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कहीं लब पर तराने हैं मुहब्बत के फ़साने हैं.

सुहाने दिन तेरी आगोश में मुझको बिताने हैं.

फिजा में ये हवायें भी तेरे दम से महकती हैं,

सुना है हीर की खातिर कई रांझे दिवाने हैं...


****************************************

यहाँ सब लोग तेरे हुश्न के किस्से सुनाते हैं.

अधर ये शबनमी उसके मुझे अक्सर रिझाते हैं.

बहुत बेचैन है ये दिल उड़ी है नींद आँखों से,

कटीले दो नयन तेरे बहुत मुझको सताते हैं..

******************************************************************

समयाभाव के चलते जल्दबाजी में दो मुक्तक लिख दिए हैं गुरुजनों एवं अग्रजों से निवेदन है की उचित मार्गदर्शन एवं अपना  आशीर्वाद प्रदान करें.

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 11:57am

बहुत रसपूर्ण मुक्तकों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 12, 2012 at 11:23am

बड़े ही ख़ूबसूरत मुक्तक प्रस्तुत किये आपने मृदु जी! बधाई हो!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2012 at 10:10am

ये सुन्दर मुक्तक सच में तुम्हारे दिल से निकले मोती की तरह हैं मृदु जी बधाई 

Comment by Albela Khatri on July 12, 2012 at 8:57am

क्या कहने शैलेन्द्र जी.......
बहुत सुन्दर और मनभावन मुक्तक.........
--वाह !

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