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घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे (रूप घनाक्षरी)

घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे ;
कृषक भी ताक रहे कब से ही आसमान |

मेघा टर्र-टर्र कर थकने लगे हैं जैसे ;
अब सुन ले उनकी अच्छा नहीं ये गुमान |

तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;
बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |

दे देंगी तेरी फुहारें कई लोगों को जिंदगी ;
झूम के सब करेंगे खूब तेरा गुणगान ||

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Comment by reshma on October 6, 2012 at 3:51pm

kya yahaan 31st varn deergh nahin hona chahiye?

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 26, 2012 at 4:35pm
प्रिय अजय सिँह जी, उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Comment by Ajay Singh on June 26, 2012 at 12:57pm

दे देंगी तेरी फुहारें कई लोगों को जिंदगी ;

अति सुन्दर ,,,,,

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 26, 2012 at 6:48am
आदरणीय उमाशंकर जी, प्रशंसा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
बारिश आधारित कृषि होने के कारण किसानोँ की व्यग्रता को दिखाने की मैने कोशिश की। बारिश न होने से आम की पैदावार पर काफी असर पड़ा है।
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 26, 2012 at 12:04am

आपके इस छंद मन मोह लिया

दे देंगी तेरी फुहारें कई लोगों को जिंदगी ;
झूम के सब करेंगे खूब तेरा गुणगान ||

हर पक्तिं मनमोहक है

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 25, 2012 at 11:32pm
बड़े भैया, आपका पुनः आभार। स्नेह बनाए रखिएगा।
Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 10:19pm

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 25, 2012 at 10:05pm
योगी जी, उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार। आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया मुझे बेहद भाती है।
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 25, 2012 at 10:02pm
आपका हार्दिक आभार अलबेला भैया।
Comment by Yogi Saraswat on June 25, 2012 at 4:20pm

दे देंगी तेरी फुहारें कई लोगों को जिंदगी ;
झूम के सब करेंगे खूब तेरा गुणगान ||

बहुत खूब ! प्यासी धरती के लिए बड़े अच्छे अल्फाज़ लिखे हैं आपने ! मुबारक

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