For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लोग कह उठें शाबा शाबा बाबाजी

दहशत-वहशत, ख़ूनखराबा  बाबाजी

गुंडई  ने है  अमन को चाबा बाबाजी
 
काम से ज़्यादा संसद में अब होता है
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा  बाबाजी

मैक्डोनाल्ड में रौनक बढती जाती है
उजड़ रहा पंजाबी ढाबा बाबाजी

मन मधुबन के भीतर सारे तीरथ हैं 
काशी-वाशी , क़ाबा-वाबा बाबाजी

देश समूचा खा कर ही पिंड छोड़ेंगे
दिल्ली पर जिनका है ताबा बाबाजी

कवि हो तो 'अलबेला' ऐसा गीत लिखो
लोग कह उठें  शाबा शाबा बाबाजी

  जय हिन्द !

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 10:53pm

आपका हार्दिक  धन्यवाद  उमाशंकर मिश्रा जी........

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 5, 2012 at 9:56pm

बहुत मजेदार कविता  हास्य एवं व्यंग का संयोजन

अद्भुत है| मजा आ गया पढ़ कर बधाई आपको

Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 6:33pm

आपकी शाबा शाबा ने तो  मेरे ख़ून में हीमोग्लोबिन  की मात्रा बढ़ा दी है  राजेश कुमारी जी,
आपका हार्दिक धन्यवाद...........

वैसे  देरी के लिए आप सॉरी न कहें  क्योंकि  आपकी इसमें कोई गलती नहीं है .....अरे आप तो पढ़ने में दो चार घंटे लेट हुए....मैं तो लिखने में  कई साल लेट हो गया ......इसलिए सॉरी कहने का अधिकार सिर्फ़ मेरा है ...हा हा हा हा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2012 at 6:11pm

वाह वाह वाह इतने अच्छे मजेदार में व्यंग  कौन कर सकता है ...अलबेला जी अब हम भी बोलेंगे शाबा शाबा बाबा जी बहुत शानदार प्रस्तुति (सॉरी पढने में थोड़ी देर हो गई )

Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 5:50pm

धन्यवाद रेखा जी..........

Comment by Rekha Joshi on June 5, 2012 at 5:46pm

काम से ज़्यादा संसद में अब होता है 
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा  बाबाजी ,अलबेला जी ,बहुत खूब 

Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 5:30pm

धन्य हो प्रदीप जी,
आपकी टिप्पणी ने  तो आनन्द करा दिया ........जय हो !

Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 5:28pm

धन्यवाद सीमा अग्रवाल जी,
आपकी बधाई  सर आँखों पर.............बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 5, 2012 at 5:20pm

गीत तो ऐसा रचया है छा गया वसंत बाबा जी 

दर्शन सारे करा दिए कौन जाए कशी वाशी काबा जी 
बाबाओं के चर्चे आम हुए थे कौड़ी के अब बेदाम हुए 
महलों में प्रवचन करते थे जंगल में धूनी लगाएं बाबा जी 
बधाई. 
इसे भी अखबार में छपवा दें नहीं तो हमें बनवा दें बाबा जी 
Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 3:11pm

'सूरज' जी, आपकी  दाद पा कर  मुझे भी मज़ा आ गया .......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service