For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(मात्रिक छंद)
उल्लाला = १५,१३ मात्रा
(मैथिली शरण गुप्त जी ने इस छंद पर कई रचनाएँ लिखी है)

(तुम सुनौ सदैव समीप है,जो अपना आराध्य है.)

*******************************************************
नहीं बड़ा परमार्थ से अब , धर्म है इस जहान में.
कभी स्वार्थ  टिक पाता नहीं,किसी आत्मा महान में.


स्वारथ में जो प्रतिपल रहा ,कलंक है नर जाति पर.
आराध्य वही मानव जिसे,न फ़िक्र जाति विजाति पर.


है नाम पुनीत दधीच का,जन हित में जीवन दिया.
रानी थी एक झाँसी हित,कुर्बां कर यौवन दिया.


 कर चयन स्वारथ की सीढ़ी , जो कोई आगे बढ़े.
प्रभु न चलूँ पद चिन्ह उसके,जो भी यह  सीढ़ी चढ़े.

  • शैलेन्द्र कुमार सिंह "मृदु'

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 7, 2012 at 1:14am

श्री अम्बरीष सर मात्रिक छंद प्रकरण के अंतर्गत मुझे उल्लाला का सिर्फ एक ही प्रकार पता था.आपने एक और प्रकार बताकर मेरा ज्ञानवर्धन किया इसके लिए आपको कोटि कोटि धन्यवाद एवं वंदन

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 7, 2012 at 1:11am

आदरणीय अम्बरीष सर सादर प्रणाम , मैंने अपने हिसाब से स्वार्थ में मात्रिक गणना ४ और परमार्थ में ६ की गणना की थी , मेरे हिसाब हिंदी छंद में  जिस अक्षर पर अं की मात्रा और  र्थ की मात्रा लगी होती है वह अक्षर दीर्घ हो जाता है. अगर ऐसा सही है तो मेरे छंद में मात्रिक वज्न सही है .कृपया मार्गदर्शन करने की कृपा करें.

                                                                          सादर

.

· 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on April 7, 2012 at 12:45am

भाई शैलेन्द्र जी ! उल्लाला छंद के कई प्रकार भी होते हैं परन्तु  १३ + १३ मात्रा का उल्लाला छंद अधिकतर प्रयोग में आता है ! छप्पय में प्रयुक्त उल्लाला १५+१३ मात्रा  का ही होता है !

Comment by वीनस केसरी on April 7, 2012 at 12:20am

यह छंद मेरे लिए बिलकुल नया है,, इस पोस्ट के लिए और इस नई जानकारी के लिए बधाई और साधुवाद स्वीकारें

Comment by वीनस केसरी on April 7, 2012 at 12:19am

मृदु जी आपका रचना कर्म मुझे प्रोत्साहित करता है कि मैं भी छ्न्द में कुछ लिखूं... जल्द ही आपकी पोस्ट पर पुनः मनन करने के लिए आता हूँ शायद कुछ सीख सकूं,, अभी तो छ्न्द के मामले में अनाडी हूँ ...

Comment by Er. Ambarish Srivastava on April 6, 2012 at 11:54pm

भाई शैलेन्द्र जी ! उल्लाला रचने का आपका यह  प्रयास बहुत भाया ! भाव पक्ष की दृष्टि से यह उत्तम है ........फिर भी  निम्नलिखित पर कृपया एक दृष्टि डाल लें !

     १४                                 १३  

११२१     २  ११ ११ १२ , २ २१ ११  १२१  २        

//परमार्थ से बढ़ कर नहीं, है धर्म इस जहान में.
स्वार्थ टिक पाता नहीं है,किसी आत्मा महान में.//

२१   ११  २२  १२ २१२   २२   १२१  २

        १४                ,              १३

(परमार्थ =५ मात्रा , स्वार्थ-=३ मात्रा) 

 

           १४             ,                    १३

११११    ११  २  २१  २,  १२१  २ ११  २१  ११

//प्रतिपल रहा जो स्वार्थ में,कलंक है नर जाति पर.

 

उपरोक्त सभी के प्रथम व तृतीय चरण में एक एक मात्रा कम है |

सुझाव :

“नहीं बड़ा परमार्थ से अब, धर्म है इस जहान में.   इसी प्रकार अन्य को भी सुधारा जा सकता है |

"प्रभु न चलूँ पद चिन्ह उसके,जो भी इस सीढ़ी चढ़े."

में 'इस' को 'यह' करना  बेहतर रहेगा |

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 9:50pm

आदरणीय प्रदीप सर सादर प्रणाम , रचना पर आपका स्नेह मिला बहुत बहुत आभार

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 6, 2012 at 9:48pm

परमार्थ से बढ़ कर नहीं,है धर्म इस जहान में.
स्वार्थ टिक पाता नहीं है,किसी आत्मा महान में.


प्रतिपल रहा जो स्वार्थ में,कलंक है नर जाति पर.
आराध्य वही मानव जिसे,न फ़िक्र जाति विजाति पर.

स्नेही मृदु जी , सादर  ,  सुन्दर अनुकर्णीय विचार, बधाई.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 2:30pm

आदरणीय सतीश सर सादर नमन, आपकी प्रतिक्रिया मिली रचना सार्थक हो गयी, उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार

Comment by satish mapatpuri on April 6, 2012 at 2:23pm

स्वार्थ को सीढ़ी बनाकर, जो कोई आगे बढ़े.

प्रभु न चलूँ पद चिन्ह उसके,जो भी इस सीढ़ी चढ़े.

बहुत खूब ....... सुन्दर ख्याल .... बेहतरीन कहन ....... उम्दा शिल्प ..... दाद कुबूल फरमाएं मृदु जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service