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ओबीओ को एक छोटी सी भेंट---ग़ज़ल

212 212 212 212

साल बारह का अब है हुआ ओबीओ 

उम्र तरुणाई की पा गया ओबीओ

शाइरी गीत कविता कहानी ग़ज़ल

के अमिय नीर का है पता ओबीओ

संस्कार औ अदब का यहाँ मोल है

लेखनी के नियम पर टिका ओबीओ 

गर है साहित्य संसार का आइना

तब तो दर्पण ही है दुनिया का ओबीओ

सीखने व सिखाने की है झील तू

ये भी पंकज तुझी में खिला ओबीओ 

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Rachna Bhatia on April 5, 2022 at 9:25pm

वाह वाह वाह आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई। हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2022 at 12:25am

बहुत सुन्दर भावनाएं प्रेषित कीं आदरणीय पंकज जी आपने 

यह मंच विलक्षण है यहाँ की परिपाटी विलक्षण है और ये सुन्दर भाव गंगा भी विलक्षण है 

प्रणाम स्वीकार करें 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 4, 2022 at 8:08am

अग्रज को सादर प्रणाम निवेदित है, इस रचना को आपका आशीर्वाद मिला, सादर आभार। सुझाव अवश्य मान्य होगा। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 4, 2022 at 1:02am

आदरणीय पंकज जी, इस अभिनव मंच, ओबीओ, के बारहवें वर्ष में प्रवेश करने के शुभ अवसर पर आपको हार्दिक बधाइयाँ.

हिंदी के शब्दों को बरतने में इजाफत प्रयुक्त नहीं होता.

हालाँकि, हिंदी के पुराने लेखकों, जैसे कि राधा राधिका रमण सिंह जैसों ने, ऐसे कुछ प्रयोग किये थे. और, अनुप्रास अलंकार का चामत्कारिक बहाव रोचक भी लगता है. किंतु बाद में भाषा के मूर्धन्य विद्वानों ने ऐसे प्रयोगों को अमान्य कर दिया. 

शुभ-शुभ

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 3, 2022 at 8:25pm

आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम

होना शाइरी ही था, टाइपिंग में ग़ल्ती हुई।

Comment by Samar kabeer on April 3, 2022 at 8:22pm

प्रिय अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा ख़ुश रहो, ओबीओ की बारहवीं सालगिरह पर आपका तुहफ़ा पसंद आया , बधाई स्वीकार करें I 

'शायरी गीत कविता कहानी ग़ज़ल'

इस मिसरे में 'शायरी' को "शाइरी" कर लें I 

'संस्कार-ओ-अदब का यहाँ मोल है'

इस मिसरे में 'संस्कार' हिन्दी भाषा का शब्द है इसलिए इज़ाफ़त का इस्तेमाल उचित नहीं' मिसरा बदलने का प्रयास करें I 

'ग़र है साहित्य संसार का आइना'

इस मिसरे में 'ग़र' को "गर" कर लें I 

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