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ग़ज़ल-कूचे में बेवफ़ा के

221 2122 221 2122

1

दरिया है आँसुओं का कूचे में बेवफ़ा के

जाना वहाँ से यारा दामन ज़रा बचा के

2

इक बात ये बता दे मेरे हसीन क़ातिल

लेता है जान कैसे तू यार मुस्कुरा के

3

पूछेगी इक न इक दिन तुमसे भी ज़िन्दगानी 

हासिल हुआ तुम्हें क्या ईमान को गँवा के

4

उल्फ़त की वादियों से रूठे रहेंगे कब तक 

देखें तो आप इक दिन दिल इनसे भी लगा के

5

पूछा है आसमाँ से कल रात छत पे आ कर

जीता है किस तरह वो उजली शुआ छिपा के

6

साबित ज़रूर होगी अपनी भी बेगुनाही

रखले हज़ार ताले चाहे तो तू लगा के

7

उसका पता बता दे ओ ज़िन्दगी के मालिक

जो दूर जा बसा है मेरी धड़कनें चुरा के

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on March 10, 2021 at 8:59pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'लेता है जान कैसे तू यार मुस्कुरा के'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-

'लेता है जाँ हमारी तू कैसे मुस्कुरा के'

'जीता है किस तरह वो उजली शुआ छिपा के'

इस मिसरे में सहीह शब्द है 'शुआ'अ' 121 देखियेगा ।

'जो दूर जा बसा है मेरी धड़कनें चुरा के'

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2021 at 6:43pm

आ. रचना बहन, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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