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दो क्षणिकाएं : ....

दो क्षणिकाएं : ....

नैन पाश में
सिमट गयी
वो
बनकर एक
एक भटकी सी
खुशबू
और समा गई
मेरी

अदेह देह में

..........................

जल पर पड़ी
जल
सूखने लगा
पेड़ों पर पड़ी
पेड़ सूखने लगा
जीवों पर पड़ी
तो कंठ सूखने लगा
तृप्ती की आस में
अंततः
साँझ की गोद में
तृषित ही
सो गई
धूप

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 352

Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 2, 2019 at 4:36pm

आदरणीय Samar kabeer जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on May 2, 2019 at 11:08am

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी क्षणिकाएँ लिखीं आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2019 at 7:12pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on May 1, 2019 at 6:14pm

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बेहतरीन क्षणिकाएं लिखी आपने। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये।

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