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जब भी मेरे क़रीब आओगे - असरार धारवी

2122 1212 22
जब भी मेरे क़रीब आओगे
अपनी हस्ती को भूल जाओगे
.
है वफ़ा क्या यह जान जाओगे
दिल अगर हम से तुम लगाओगे
.
मुस्कुराता लगेगा जग सारा
आप जब दिल से मुस्कुराओगे
.
सोच लो खूब इश्क़ से पहले
ज़िन्दगी दांव पर लगाओगे
.
ज़िन्दगी की किताब मत खोलो
उसमें असरार कुछ न पाओगे
_____________________
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2018 at 7:08pm

वाह बहुतखूब ग़ज़ल कही है...बधाई

Comment by ASRAR DHARVI on March 7, 2018 at 5:59pm
जनाब समर कबीर सहिब आपकी मुहब्बत का दिल से शुक्र गुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on March 6, 2018 at 10:50pm

जनाब असरार धारवी साहिब आदाब, पहली बार आपकी ग़ज़ल से रूबरू हुआ हूँ, अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by ASRAR DHARVI on March 6, 2018 at 7:12pm
शुक्रिया मोहतरम सलीम रज़ा साहिब
Comment by SALIM RAZA REWA on March 6, 2018 at 4:29pm
जनाब असरार धारवी साहिब,
ब्लाग की पहली गज़ल में आपका इतेक़बाल है,
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है..
जब भी मेरे क़रीब आओगे
अपनी हस्ती को भूल जाओगे
.
है वफ़ा क्या यह जान जाओगे
दिल अगर हम से तुम लगाओगे
. क्या कहने मुबारक़बाद क़ुबूल करें...

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