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ग़ज़ल,,,,भीगी पलकों पे कई ख़्वाब,,

2122/1122/1122/22/112

अश्क़ आँखों में यूँ बेताब हुआ करते हैं
भीगी पलकों पे कई ख़्वाब हुआ करते हैं।

जिनकी क़ीमत ही नहीं लोगों की नज़रों में कोई
रब की नज़रों में वो सुरख़ाब हुआ करते हैं।

जो भी रखते हैं बुज़ुर्गों की रिवायत का भरम
लोग दुनिया में वो नायाब हुआ करतें हैं।

ख़ुश्क फूलों की तरह मुझको समझने वालों
गुल में ख़ुश्बू के कई बाब हुआ करते हैं।

तुहमतें गैरों पे साज़िश की लगाने वाले
तेरे दुश्मन तेरे एहबाब हुआ करते हैं।

तुझसे मिलने को हूँ बेताब ये है सच लेकिन
आमद ओ रफ़्त के असबाब हूआ करते हैं।

जो भी ठुकराते हैं दावत को रसूलों की सहर
राह ए दरिया में वो ग़रका़ब हुआ करते हैं।

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Afroz 'sahr' on November 9, 2017 at 1:27pm
जनाब तस्दीक़ साहिब ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,,,
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 9, 2017 at 1:14pm
जनाब अफ़रोज़ साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 10:08pm
आली जनाब समर साहिब आदाहब आपने ग़ज़ल को सराहा मेंरी ख़ुश बख़्ती आपके मशविरे हमेशा ही बहुत मुफ़ीद होते हैं,,,आपकी मुहब्बतें इसी तरह मिलती रहें ,,,
Comment by Samar kabeer on November 8, 2017 at 9:56pm
जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'जिनकी क़ीमत ही नहीं लोगों की नज़रों में कोई'
रब की नज़रों में वो सुरख़ाब हुआ करते हैं'
इस शैर में क़ाफ़िया दुरुस्त नहीं है,'सुरख़ाब'एक आबी परिन्दा है, यहाँ 'नायाब'क़ाफ़िया बहुत मुनासिब होगा ।

तीसरे शैर के ऊला मिसरे में आख़री शब्द को "भरम"करलें ।

'तुझसे मिलने को हूँ बेताब है ये सच लेकिन'
इस मिसरे को यूँ कर लें तो रवानी बढ़ जायेगी:-
"तुझसे मिलने को हूँ बेताब ये सच है लेकिन"

'राह-ए-दरया में वो ग़रक़ाब हुआ करते हैं'
इस मिसरे में 'राह-ए-दरया'की तरकीब सही नहीं है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-
'लोग वो दरया में ग़रक़ाब हुआ करते हैं'
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 9:18pm
आदरणीय आशीष जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़़न नवाज़ी के लिए शुक्रिया,,,,
Comment by Ashish shrivastava on November 8, 2017 at 9:03pm
बहतरीन ग़ज़ल ।
वाह ! वाह !
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 5:34pm
आदरणीय ब्रजेश जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,,
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 4:03pm
आदरणीय अजय तिवारी जी ग़ज़ल को समय देने और हौसला बढा़ने के लिए आपका शुक्रिया,,,
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 4:00pm
आदरणीय सलीम रज़ा जी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया,,,
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 3:55pm
आदरणीय आरिफ़ जी ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका मश्कूर हूँ,,,

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