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चुनावी बहार - डॉo विजय शंकर

वाह रे तेरे लटके ,
वाह रे तेरे झटके ,
वाह रे तेरे फटके ,
वाह रे तेरा हँसना ,
वाह रे तेरा रोना ,
वाह रे तेरा धोना ,
वाह , एक दूसरे को धोना ,
अंत में सबका खूब
धुला धुला होना ,
वाह रे तेरा बेचैन होना ,
वाह रे तेरा चैन से सोना ,
वाह रे तेरा रूठना ,
वाह रे एक दूजे को मनाना ,
वाह रे तेरे आंसू , कितने
जबरदस्त कितने धांसू ,
जय जय जय हो .......

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2017 at 2:17am
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपकी स्पष्ट टिप्पणी के लिए आभार। जहां तक शब्दों का प्रश्न है , यह सारे शब्द फेसबुक पर प्रतिदिन प्रयोग हो रहे हैं। व्यंग और कटाक्ष में नित प्रयोग हो रहे हैं , हम केवल दृष्टा हैं। इस प्रस्तुति में तो उनमें से मात्र बीस प्रतिशत शब्द ही प्रयोग हुए हैं। स्थिति यह है कि सबके दावे अपने अपने हैं और वे क्या संकेत कर रहे हैं वह भी स्पष्ट दिख रहा है। एक रोचक बात यह है कि जो वास्तविकता है उस पर कहीं कोई चर्चा नहीं , जो दिख रहा है उसे नकारा जा रहा है जो संभव होना कठिन है वह ( स्वप्न की तरह ) दिखाया जा रहा है। ऐसे में हर बात को उपेक्षित मान कर छोड़ते जाना भी कभी कभी कठिन हो जाता है। वैसे आपकी बात भी सही है , में इन्हीं बातों को भिन्न तरह से भी कह सकता था , निसंदेह। आगे से अवश्य ख्याल रखूंगा , आपकी राय मेरे लिए बहुत महत्त्व रखती है।
आपका बहुत बहुत आभार और धन्यवाद , सादर।
Comment by Samar kabeer on January 25, 2017 at 8:41pm
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,अगर इस कविता पर आपका नाम नहीं होता तो मैं इसे आपकी कविता क़तई नहीं मानता,गुस्ताख़ी की मुआफ़ी चाहता हूँ,आप ऐसे शब्दों में तो अपनी बात नहीं कहते ?माना कि ये कटाक्ष है, लेकिन ये आपका अंदाज़ नहीं,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 25, 2017 at 8:24pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , स्वीकृति और पसंद करने के लिए आभार और धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 25, 2017 at 8:24pm
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी , स्वीकृति और पसंद करने के लिए आभार और धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 25, 2017 at 7:57pm
आदरणीय विजय सर आज जे इस माहोल पे खूब हुयी है ये रचना इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 25, 2017 at 7:57pm
आदरणीय विजय सर आज जे इस माहोल पे खूब हुयी है ये रचना इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 6:45pm

आदरणीय विजय शंकर सर, क्या ही तीखा कटाक्ष हुआ है. समसामयिक माहौल को क्या खूब शाब्दिक किया है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

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