122 122 12 2 122
जिधर भी मैं जाऊँ डगर आपकी है
हवा मे फज़ा में ख़बर आपकी है
महज़ रात थी आपके हक़ में लेकिन
सुना है कि अब हर पहर आपकी है
हरिक पुत्र को मुफ़्त मिलती है ममता
तो, ममता भी अब उम्र भर आपकी है
रपट कौन लिक्खे सभी आपके हैं
कि सरकार भी मोतबर आपकी है
ज़ियारत करें ना करें आप लेकिन
सियासत पे टेढ़ी नज़र आपकी है
नज़ीर आपकी अब मैं दूँ भी तो कैसे
हरी-सावनी सी नज़र आपकी है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , जी समझ गया , सुधारने का प्रयास कर रहा हूँ , आपका हार्दिक आभार ।
आदरनीय अभिषेक भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय तस्दीक भाई , सराहना और सलाह के लिये आपका हार्दिक आभार , सुधारने का प्रयास कर रहा हूँ ।
आ० अनुज , आ० तस्दीक भाई की बात में दम हैजब आप हरिक की बात करते है तब -- हरिक काली रात ही चलेगा , काली रातों नहीं सादर .
मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
शेर 2 के ऊला मिसरे में '' हर इक काली रात '' या '' काली रातों '' देख लीजियेगा --
आदरनीय मिथिलेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
मै बह्र सुधारा था , उसी समय , और एक शेर और भी जोड़ा था , एडिट करके , लेकिन पता नही क्यों एडिट के बाद वाली गज़ल कैसे प्रकाशित नही हुई , क्यों एडिट हो ही नही पायी पता नहीं ... वो शेर भी मेरे पास रिकार्ड मे नही है , क्योंकि मुझे तुरंत सूझा था और वहीं लिख दिया था . सोचा कि बाद मे नोट कर लूँगा ... साइट के बटन आज कल ठीक काम नहीं कर रहे हैं ।
अब फिर से सही बहर लिख दूँगा ..... याद दिलाने के लिये आपका आभार ।
सही बहर -- 122 122 122 122 है
आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका । जी आपने सही कहा , नज़ीर स्त्री लिंग है , सुधार लूँगा , आपका आभार ।
आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका । जी आपने सही कहा , नज़ीर स्त्री लिंग है , सुधार लूँगा , आपका आभार ।
आदरणीय सुशील भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार
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