For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल को ढूँढने, चलिए चलें खेतों में गाँवों में (ग़ज़ल)

1222   1222   1222   1222

न जाने धूल कब से झोंकता था मेरी आँखों में!
जो इक दुश्मन छुपा बैठा था मेरे ख़ैरख़्वाहों में!

भटकते फिरते थे गुमनाम होकर जो उजालों में!
हुनर उन जुगनुओं का काम आया है अंधेरों में!

फ़क़त इक वह्म था,धोखा था बस मेरी निगाहों का,
अलग जो दिख रहा था एक चेहरा सारे चेहरों में!

हक़ीक़त के बगूलों से हुए हैं ग़मज़दा सारे,
हुआ माहौल दहशत का,तसव्वुर के घरौंदों में!

ख़ता इतनी सी थी हमने गुनाह-ए-इश्क़ कर डाला,
तभी तो ख़ुदकुशी-दर-ख़ुदकुशी पाई है किश्तों में!

मैं अपने दिल की कहने जब भी उसके पास जाता हूँ,
वो उलझा देता है मुझको ज़माने भर की बातों में!

भले तनहाइयाँ हों, हम कभी तनहा नहीं रहते,
उसी के लम्स का एहसास रहता है हवाओं में!

निगाह-ए-यार, दर्द-ए-दिल, फरेब-ए-इश्क़ से कुछ दूर,
ग़ज़ल को ढूंढने, चलिए चलें खेतों में, गाँवों में!

हमीं "जय" ज़ीस्त की ज़ुल्फ़ों के साये से नहीं निकले,
वगरना मौत तो कब की हमें ले लेती बाहों में!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 544

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 12, 2016 at 10:02pm

निगाह-ए-यार, दर्द-ए-दिल, फरेब-ए-इश्क़ से कुछ दूर,
ग़ज़ल को ढूंढने, चलिए चलें खेतों में, गाँवों में!........बेहद शानदार रचना

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 30, 2016 at 3:32pm
आदरणीय रामबली गुप्ता जी, यह आपका बड़प्पन है! अपना स्नेह और सहयोग बनाए रखें और हृदय से धन्यवाद स्वीकार करें।
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 30, 2016 at 3:30pm
आदरणीय वासुदेव जी, हार्दिक धन्यवाद प्रेषित है!
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 30, 2016 at 3:29pm
आदरणीय सुरेश जी, हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें!
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 30, 2016 at 3:29pm
आदरणीय समर कबीर जी,अपनी कोशिश पर आपसे इस तरह की प्रतिक्रिया पाकर फूले नहीं समा रहा हूँ मैं। यह आप बड़े जनों का ही आशीर्वाद और इस मंच के सहयोगात्मक भावना से ही मुमकिन हो सका है। बहुत बहुत धन्यवाद आपको! सादर!!
Comment by रामबली गुप्ता on September 30, 2016 at 5:32am
वाह वाह आद0 भाई जयनित कुमार जी। ज्यादा क्या कहूँ जो कहना था वो तो आद0 समर भाई साहब ने कह दिया है अब तो बस यही कहूँगा कि बल भर बधाई लीजिये इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 27, 2016 at 10:55am
आ.जयनीत कुमारजी

ख़ता इतनी सी थी हमने गुनाह-ए-इश्क़ कर डाला,
तभी तो ख़ुदकुशी-दर-ख़ुदकुशी पाई है किश्तों में!

बहुत ही लाजबाब शेर इस खूबसूरत ग़ज़ल का। तारीफ के लिए अल्फ़ाज़ नहीं है।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 27, 2016 at 10:29am
आदरणीय श्री जयनीत कुमार जी बहुत ही सुन्दर एवं सटीक सारगर्भित रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Samar kabeer on September 26, 2016 at 10:56pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,क्या तारीफ़ करूँ आपकी ग़ज़ल की,बस झूम रहा हूँ,अल्फ़ाज़ की चुस्त बंदिश,रवानी,देखते ही बनती है,आपकी ग़ज़ल का सफ़र सही दिशा में हो रहा है,ये देख कर मुझे बहुत ख़ुशी हासिल हुई,इस क्रम को टूटने न देना ।
इस ग़ज़ल के हर शैर पर दिल से ढेरों दाद दे रहा हूँ,इसके साथ ही ढेरों मुबारकबाद भी,क़ुबूल फरमाएं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
3 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service