For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

असहज अनियंत्रित- डा0 गोपल नारायन श्रीवास्तव

आज भी कभी

जब उधर से गुजरता हूँ

उतर जाता हूँ

उस खास स्टेशन पर

टहलता हूँ देर तक

लम्बे प्लेटफार्म पर

बेसुध आत्मलीन

 

फिर चढ़ जाता हूँ रेलवे पुल पर

तलाशता हूँ वह् रेलिंग

वह ख़ास जगह

टटोलकर देखता हूँ 

शायद वही जगह है

स्तब्ध हो जाता हूँ

लगता है कोई

सोंधी महक

सहसा उठी और

सिर से गुजर गई

 

नीचे आता हूँ

फिर पुल के नीचे

पुल के आधार पर

सीमेंट का चत्वर

इधर मै बैठा था

उधर-----

 

उस दिन मुझे माइग्रेन था

मैं कहीं लेटा था   

खोजता हूँ वह बेंच

जिस पर आज भी शायद

होता होगा कोई स्पंदन

मेरी अनुभूति का

 

स्टेशन  से सटा

हनुमान जी का मन्दिर

जहाँ हम दूर से मिलते थे

बैठते थे दरी पर

प्रायः वहां रहता था सन्नाटा 

अब भी है वह महावीर विग्रह 

जो साक्षी है

कुछ सरस अनुभूतियों का

कुछ सिहरन भरे अहसास का

 

फिर कौंधते हैं

बाहर मूगफली खरीदते

और फल की दूकान पर

उनकी सेहत आजमाते

कुछ दृश्य   

और वह बरसता मेह

एक खास सौन्दर्य

खिले पाटल सा 

वह लटों से निचोड़ती पानी

मेरे भाव-लोक की रानी

चोर दृष्टि से निहारती

वह उसकी आँखें

 

लौट आता हूँ फिर प्लेटफार्म पर

और टहलता हूँ

पटरियों के समानांतर

हाँ इसी जगह

मैंने अपने मित्र से कहा था

उसे नही ‘उसे’ सुनाते हुए

हम इन रेल की

दो समानान्तर पटरियों की तरह 

साथ-साथ चल तो सकते हैं

पर मिल नहीं सकते

 

मै तलाशता हूँ

अपनी वह खोई आवाज

महसूस करता हूँ

नीले परिधान का आकर्षण

उसके सफेद दुपट्टे की तरह लहराता

अपने मन का सतरंण

 

दिखता नहीं मुझे अब वह प्याऊ

जहाँ खोया था

मेरा हरा रंगीन चश्मा 

वह चाय की दूकान भी नहीं अब

जिसमें सुलगता रहता था

रेलवे का कोयला

 

बहुत कुछ बदला है 

पर बाकी हैं अभी भी

ढेर से निशानियाँ 

बहुत सी संवेदना

व्यथा को सहेजती अनगिनत पीडाएं

इसीलिये मन को खींचता है

यह अदना सा स्टेशन

और जब भी मै इधर से गुजरता हूँ  

हठात उतर पड़ता हूँ ट्रेन से

असहज अनियंत्रित

 (मौलिक व् अप्रकाशित )

   

Views: 366

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 6:46am
बहुत कुछ बदला है
पर बाकी हैं अभी भी
ढेर से निशानियाँ
बहुत सी संवेदना
व्यथा को सहेजती अनगिनत पीडाएं
इसीलिये मन को खींचता है
यह अदना सा स्टेशन
और जब भी मै इधर से गुजरता हूँ
हठात उतर पड़ता हूँ ट्रेन से
असहज अनियंत्रित....... वाह !!! पढते हुए खो गई और हो गई कुछ देर के लिए मै भी " असहज अनियंत्रित " । बधाई इस सार्थक रचनाकर्म के लिये आपको आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 21, 2015 at 3:13pm

आदरणीय गोपाल सर फ्लेश बैक के साथ कविता में बढ़िया कथा चित्र खींचा है हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 21, 2015 at 12:44pm

आदरणीय बड़े भाई , बहुत खूबसूरत लगी आपकी कविता , एक कहानी का भी मज़ा साथ मे लिया । आपको दिली बधाइयाँ ।

Comment by pratibha pande on October 20, 2015 at 7:22pm

जीवन यात्रा में कुछ  स्टेशन थे जहाँ रुक जाना चाहते थे, बस जाना चाहते थे ,पर अंतिम क्षणों में चलती ट्रेन में फिर चढ़ गए और आगे चल दिए ,  इन्हीं  एहसासों को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है आपने अपनी रचना में आदरणीय , बहुत बधाई आपको ,सादर 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on October 19, 2015 at 7:02pm

हम इन रेल की

दो समानान्तर पटरियों की तरह

साथ-साथ चल तो सकते हैं

पर मिल नहीं सकते.
आ गोपाल नारायण जी ,
यह अतीत का प्रश्नचिन्ह आज भी वहीँ है। हम बड़े हो गए पर इस स्मृति शेष का क्या कहना ? यह तो शाश्वत सत्य की तरह आज भी जीवंत है. बधाई इस अतीत यात्रा पर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service