22 22 22 22 22 22 22 2 ---
पेडों पर इल्जाम लगा वो ख़ुद की खातिर जीता है
सोच रहा हूँ मैं सागर क्या अपना पानी पीता है ?
झूठा- सच्चा , सही ग़लत ये सब बे पर की बातें हैं
दिखे फाइदा, सच को मोड़ो जिसको जहाँ सुभीता है
सभी उँगलियाँ अलग हो गईं अहम बीच में आने से
चुल्लू में कुछ रुका नहीं , जो रीता था, वो रीता है
शब्द कोश बस रट लेने से भाव नहीं पैदा होता
व्यर्थ हाथ में रख लेना क़ुरआन बाइबिल गीता है
हर इच्छायें अजगर जैसी लिपटी रहती हैं मन से
और समय का पंजा झपटे जैसे कोई चीता है
हर आदम में कृष्ण- कंस है , राम जहाँ है रावण भी
हर औरत में सुरसा भी है, और सभी में सीता है
जोंक नुमा किरदार कहूँ या अमर बेल इसको बोलूँ
जो पर जीवी जिससे लिपटा उसका खूँ ही पीता है
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गिरिराज भंडारी
Comment
आदरणीय जवाहर भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय आमोद भाई , आपका बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय दिनेश भाई , सराहना के लिये आपका ऋदय से आभारी हूँ ।
22 22 22 22 22 22 22 2 -- फेलुन फेलुन ............... फा , ऐसी बहरों मे 22 को 112 121 या 211 कर लेने की छूट रहती है , बस गेयता बाढित न हो , इसका ध्यान रखा जाता है , अंत मे फा ( 2 ) लेना अच्छा रहता है वैसे बिना इसके भी गज़लें कही जाती है , 22 22 22 की कितनी भी संख्या ले सकते हैं ।
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय मोहन भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।
शीर्षक और सभी शेर ग़जब हैं
झूठा- सच्चा , सही ग़लत ये सब बे पर की बातें हैं
दिखे फाइदा, सच को मोड़ो जिसको जहाँ सुभीता है... वाह!
आदरणीय गिरिराज सर, बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
शब्द कोश बस रट लेने से भाव नहीं पैदा होता
व्यर्थ हाथ में रख लेना क़ुरआन बाइबिल गीता है ... बहुत सही कहा है बढ़िया शेर
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