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सुर्मई, शाम हो रही होगी
रात दस्तक भी दे चुकी होगी
रात के हक़ में गर अंधेरा है
सुब्ह के हक़ में रोशनी होगी
दिल ठहर, बस नज़र मिला उनसे
मिल गईं गर, तो बात भी होगी
जिस तरह जी रही थी अब तक तू
ज़िन्दगी सच में थक गई होगी
बंद आखें थी , होठ चुप चुप थे
गुफ्तगू किस तरह हुई होगी
जागी रातों में जो रुलाती थी
वो मेरी रूहे शाइरी होगी
माँ-पिता गर सजे धजे इतना
कैसे बच्चों में सादगी होगी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्राची जी, आपने गज़ल के चार चार शे र चुन कर मेरी मेहनत सफल कर दी । उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय तल से आभार ।
आदरणीय शिज्जु भाई , बहुत दिनो बाद आपको देख के अच्छा लगा ! गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
आदरणीय सौरभ भाई , आपकी सराहना ने गज़ल का मान बढ़ा दिया । उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।
वाह! आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
बहुत ही नजाकत से कहे गए पुरअसर अशआर हुए हैं..
दिल ठहर, बस नज़र मिला उनसे
मिल गईं गर, तो बात भी होगी...................अहा! अहा! क्या बात है
जिस तरह जी रही थी अब तक तू
ज़िन्दगी सच में थक गई होगी..............हासिले ग़ज़ल शेर
जागी रातों में जो रुलाती थी
वो मेरी रूहे शाइरी होगी ....................वाह ! वाह!
माँ-पिता गर सजे धजे इतना
कैसे बच्चों में सादगी होगी........................बहुत ही खूबसूरत शेर
दिली बधाई पेश है आदरणीय
स्व्वीकार करें
वाह बहुत बढ़िया आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत बधाई आपको
ज़िन्दग़ी सच में थक गयी होगी .. वाह वाह क्या मिसरा निकाला है आपने !
माँ-पिता गर सजे धजे इतना
कैसे बच्चों में सादगी होगी
जय हो..
आपके कमाल में शरीक होना अच्छा लगता है.
दाद दाद दाद !!
आदरणीय महर्षि भाई , सराहना के लिये आपका आभार ।
आदरणीय समर कबीर भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय राहुल भाई , सराहना के लिये आभार आपका ।
बढ़िया गजल हुई है ,सर ,बधाई आपको |
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