For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर -कितनी सादा-दिली से मिलता है

२१२२/१२१२/२२ 
कितनी सादा-दिली से मिलता है
जब समुन्दर नदी से मिलता है.
.
इक नयी कायनात पनपेगी    
कोई भौंरा कली से मिलता है.  
.
रब्त इस बात पर टिके हैं अब
कोई कितना किसी से मिलता है.
.
हर किसी से यही वो कहते हैं
दिल मेरा आप ही से मिलता है. 
.
अब सुमंदर में भी है बे-चैनी
क़तरा अपनी ख़ुदी से मिलता है.
.
सुब’ह से पहले जुगनू यूँ चमका
गोया लम्हा सदी से मिलता है.

मौत से क्या पता मिले क्या कुछ
दर्द.... हाँ ...ज़िन्दगी से मिलता है.
.
मुफ़्लिसी से गुज़र रहा होगा
आजकल वो सभी से मिलता है.
.
नाच उठती हैं बृज की सब गलियाँ
श्याम जब बाँसुरी से मिलता है.
.
‘नूर’ अहसास-ए-कमतरी क्यूँ हो
अपना शजरा उसी से मिलता है.

.
निलेश "नूर"

Views: 938

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2015 at 9:44pm

शुक्रिया आ. वीनस जी ....
आपको ग़ज़ल पसंद आई ये अहसास अपने आप में कितना आनंददायी है, ये बता पाना असंभव है ..
ईश्वर करे ये मेरी पहली ग़ज़ल हो ...
आमीन 

Comment by वीनस केसरी on May 31, 2015 at 11:13am

अरे भाई क्या गज़ब कर डाला ...
एक एक शेर ने जान निकाल ली ....

ये आपकी सबसे अच्छी ग़ज़लों में शुमार होगी ... बेशक

जिंदाबाद भाई जिंदाबाद

हस शेर तो हासिले ग़ज़ल है .. हा हा हा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 30, 2015 at 9:24am

हुज़ूर .. सारे मौसम यहीं हैं, वो कहीं नहीं गये हैं. अलबत्ता आपके शजर ने इन गुजरे सालों में अपनी भावनाओं को और संयत करना सीख लिया है, कुछ टूटने-ऊटने को दिखने नहीं देता !  भइया, ये व्यावहारिकता भी न.. अजीब सा चोला है, एक वक़्त के बाद इसे पहनना ही होता है.. विधवा की सफ़ेद साड़ी की तरह !

क्या रोयें, फ़रियाद करें.. चलिये, कुछ और ग़ज़ल लिख लेते हैं..

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 30, 2015 at 9:01am

आ. सौरभ सर 
.
टूटता दिल भी एक नेमत है 
शायरी का चलो भला होगा 
.

नूर 
हालाँकि अभी दिल विल टूटने का मौसम नहीं रहा ..:))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 9:44pm

// आपकी टिप्पणी से मैं भी ऐसे ही किसी मतले की तलाश में निकलता हूँ ...या कहें कि आता हूँ ..अपने अंदर //

आमीन !

वाह वाह ! ग़ज़ल का कितना भला होने वाला है !

//ये बहर अपनी सी लगती है .. शब्दों में कंजूस (मितभाषी टाइप) और असर में पूरी //

सही बात !

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2015 at 9:36pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर ...
पता नहीं क्यूँ..ये बहर अपनी सी लगती है ..
शब्दों में कंजूस (मितभाषी टाइप) और असर में पूरी 
.
आपकी टिप्पणी से मैं भी ऐसे ही किसी मतले की तलाश में निकलता हूँ ...या कहें कि आता हूँ ..अपने अंदर 
आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 8:03pm

आपने दिल से कहा, डूब कर कहा, तो हमने भी दिल से सुना, डूब के सुना !
इस सीधी-सादी मगर क़ामयाब ग़ज़ल केलिए दिल से शुक्रिया आदरणीय नीलेश भाईसाहब.

एक बार फिर से मतले पर जा रहा हूँ.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2015 at 7:28pm

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी...
आपको ग़ज़ल पसंद आई तो रचनाकर्म सार्थक हुआ 
स्नेह बनाए रखिये 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2015 at 7:27pm

शुक्रिया आ. नरेंद्र सिंह जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2015 at 5:16pm

आदरणीय नूर जी ..बहुत खूब ग़ज़ल ..हर शेर उम्दा ..रब्त इस बात पर टिके हैं अब 
कोई कितना किसी से मिलता है........................मौत से क्या पता मिले क्या कुछ 
दर्द.... हाँ ...ज़िन्दगी से मिलता है.....................................मुफ़्लिसी से गुज़र रहा होगा 
आजकल वो सभी से मिलता है(वाकई बड़ी ही बारीकी से महसूस कियाहै ..........................)सुब’ह से पहले जुगनू यूँ चमका 
गोया लम्हा सदी से मिलता है........काबिले तारीफ़ इस ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें 

.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"घास पूस की छत बना, मिट्टी की दीवारबसा रहे किसका कहो, नन्हा घर संसार। वाह वाह वाह  आदरणीय…"
50 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक रक्तले सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया जानकर खुश हूं। मेरे प्रयास को मान देने के लिए…"
54 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
59 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकर मुग्ध हूं। हार्दिक आभार आपका। मैने लौटते हुए…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। चित्र के अनुरूप सुंदर दोहे हुए है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। चित्र को साकार करते अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।  भाई अशोक…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार। छठे दोहे में सुधार…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र आधारित दोहा छंद टूटी झुग्गी बन रही, सबका लेकर साथ ।ये नजारा भला लगा, बिना भेद सब हाथ…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्र को साकार करती उत्तम दोहावली हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाई, आपकी प्रस्तुति ने आयोजन का समाँ एक प्रारम्भ से ही बाँध दिया है। अभिव्यक्ति में…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  दोहा छन्द * कोई  छत टिकती नहीं, बिना किसी आधार। इसीलिए मिलजुल सभी, छत को रहे…"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, प्रदत्त चित्र पर अच्छे दोहे रचे हैं आपने.किन्तु अधिकाँश दोहों…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service