प्यासी देह .....
मन की कंदराओं में किसने .......
अभिलाषाओं को स्वर दे डाले .......
किसकी सुधि ने रक्ताभ अधरों को ......
प्रणय कंपन के सुर दे डाले//
मधुर पलों का मुख मंडल पर ........
मधुर स्पंदन होने लगा .........
मधुर पलों के सुधीपाश में ........
मन चन्दन वन होने लगा//
नयन घटों के जल पर किसकी .......
स्मृति से हलचल होने लगी ........
भाव समर्पण का लेकर काया .......
मधु क्षणों में खोने लगी//
किसको छूकर हृदय द्वार पर .......
पवन ने दस्तक दे डाली ......
नृत्य भाव में मग्न हो गयी ......
प्यासी देह की हर डाली//
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ जी -कुछ अपरिहार्य घरेलू परिस्थितियों के चलते मैं आपकी प्रतिक्रिया पर आभार व्यक्त न कर सका,इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ -रचना पर आपकी स्नेहमयी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया और सुझाव सदा मेरे लेखन को उत्साहित करती है - इस मान से मैं स्वयं को गौरान्वित महसूस कर रहा हूँ - रचना पर आपकी स्नेह दृष्टि का हार्दिक आभार।
रीतिकालीन कविताओं की याद दिलाती रचना हुई है. .. यदि छन्दयुक्त रचना होती तो सोने में सुहागा होता.. :-))
इस कमनीय प्रयास पर हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय सुशील सरनाजी.
आदरणीय vijay nikore जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! बधाई।
आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय MUKESH SRIVASTAVA जितेन्द्र जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीया kanta roy जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय shree suneel जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
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