न स्याम भई न श्वेत भयी …
न स्याम भई न श्वेत भयी
जब काया मिट के रेत भयी
लौ मिली जब ईश की लौ से
भौतिक आशा निस्तेज भयी
यूँ रंग बिरंगे सारे रिश्ते
जीवन में सौ बार मिले
मोल जीव ने तब समझा
जब सुख छाया निर्मूल भयी
सब थे साथी इस काया के
पर मन बृंदाबन सूना था
अंश मिला जब अपने अंश से
तब तृषा जीवन की तृप्त भयी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ जी -कुछ अपरिहार्य घरेलू परिस्थितियों के चलते मैं आपकी प्रतिक्रिया पर आभार व्यक्त न कर सका,इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ -घर में बड़ा होने के नाते और वन मेन शो होने का अर्थ आप भली भांति समझते हैं - जैसे तैसे २४ के २५ घंटे करने पड़ते हैं-खैर , रचना पर आपकी स्नेहमयी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया और सुझाव सदा मेरे लेखन को उत्साहित करती है - इस मान से मैं स्वयं को गौरान्वित महसूस कर रहा हूँ - मात्रिक्ता के बारे में आपका कथन और सुझाव बिलकुल सही है और इस पर मैं प्रयास भी कर रहा हूँ -कोशिश करूंगा आपके कथन को सच करके दिखाऊँ। रचना पर आपकी स्नेह दृष्टि का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरनाजी, इस रचना का विषय आपको बार-बार आकर्षित करता है. आपकी आध्यात्मिकता आपके शब्दों का चयन करती है और निर्गुन के झोंके बहने लगते हैं. हार्दिक बधाई आदरणीय.
वैसे, अन्यथा न लगे, और मैं कई बार इशारे कर चुका हूँ, आदरणीय, आप जिस मंच पर हैं, तनिक प्रयास करें तो मात्रिकता आपके लिए दुरूह नहीं रह जायेगी. फिर ऐसी भावदशा की रचनाओं को सप्रवाह पढ़ने का लुत्फ़ ही कुछ और है. नैसर्गिक ही सही, इस रचना में कमोबेश प्रवाह है. लेकिन इसे सस्वर करना कवि का दायित्व भी है.
विश्वास है, आदरणीय, आप मेरे भावार्थ को समझेंगे.
सादर
आदरणीय shree suneel जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Samar kabeer जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Manoj kumar Ahsaasजी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
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