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"अरे वो पेड़ कहा गया , गिर गया क्या ?"

"नहीं चाची , ठूँठ था तो काट दिया लोगों ने "|
बेऔलाद चाची को कुछ चुभा और वो तेजी से आगे बढ़ गयीं |

.

( मौलिक एवम अप्रकाशित )

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 21, 2017 at 10:01pm

बहुत बढ़िया आदरणीय विनय सर , बढ़िया कथा हुई है जिसके लिए बधाई आपको |

Comment by विनय कुमार on November 19, 2014 at 1:14pm

आभार विनोद जी..

Comment by विनोद खनगवाल on November 17, 2014 at 5:01pm

bahut badiya ji

Comment by विनय कुमार on November 12, 2014 at 3:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण लडीवाला जी , सीख रहा हूँ आप गुणी जनो से लघुकथा की बारीकियां..

Comment by विनय कुमार on November 12, 2014 at 3:45pm

अब आदरणीय योगराज जी का स्नेह भी मिल गया , रचना सार्थक हुई | बहुत बहुत आभार सर ..

Comment by विनय कुमार on November 12, 2014 at 3:44pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी..

Comment by विनय कुमार on November 12, 2014 at 3:44pm

बहुत बहुत आभार सोमेश जी..

Comment by विनय कुमार on November 12, 2014 at 3:44pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश जी , आप की प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्नता हुई..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 12, 2014 at 12:02pm

अब इससे और छोटी लघु कथा क्या होगी जिस गागर में सागर समा जाय | कमाल है साहब | अतिशय बधाई श्री विजानी कुमार जी 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 12, 2014 at 11:35am

अगर यह लघुकथा कोई अनाड़ी लिखता तो शायद हनुमान की पूंछ की जितनी लम्बी कर देता, मगर आपने ३ पंक्तियों में पूरा उपन्यास कह डाला भाई विनय कुमार जी, योगी बाबा खुश हुआ - जीते रहिये।

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