For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२ २२ २२ २२ २

किसके गम का ये मारा निकला
ये सागर ज्यादा खारा निकला

दिन रात भटकता फिरता है क्यों
सूरज भी तो बन्जारा निकला

सारे जग से कहा फकीरों ने
सुख दुःख में भाईचारा निकला

हथियारों ने भी कहा गरजकर
इन्सा खुद से ही हारा निकला

चाँद नगर बैठी बुढ़िया का तो
साथी कोई न सहारा निकला



मौलिक व अप्रकाशित

Views: 381

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 10, 2014 at 12:15pm

:-)))))

Comment by gumnaam pithoragarhi on August 10, 2014 at 11:47am

नमस्कार  सर  आपका धन्यवाद  कि आपने मेरी रचना के लिए समय निकाला ,,,,,,,,,,,, वाकई मैं सोच नहीं पाया कि थोड़े  बदलाव से ग़ज़ल की खूबसूरती बढ़ जाएगी।  फिर से आपका  सभी धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2014 at 8:49am

आदरणीय गुमनाम भाई , ग़ज़ल बहुत सुन्दर कही है , मैं भी  आदरणीय सौरभ भाई जी से सहमत हूँ , आ. नीलेश भाई ने आपकी ग़ज़ल को और सँवार दिया है , सधन्यवाद उस सुधार को अपना लीजिये | आपको ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 10, 2014 at 1:23am

जिस गंभीरता और आत्मीयता से आदरणीय नीलेशजी ने आदरणीय लक्ष्मण जी की इस ग़ज़ल को सँवारा है यह इस मंच की परिपाटी को सुदढ़ करता हुआ प्रयास है. यह अवश्य है कि इस बह्र में प्रवाह की अहमीयत सर्वाधिक है.

प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय लक्ष्मण जी.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 9, 2014 at 1:14pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है ..बधाई आपको 
लेकिन मुझे लगता है कि नौ कि जगह आठ के सेट में लय अधिक निखरती ..
माफ़ी चाहूँगा ..बिना इजाज़त छेड़छाड़ कर रहा हूँ ..
.
किसके गम का  मारा निकला
सागर ज्यादा खारा निकला

दिन औ रात भटकता है ये 
सूरज तो  बन्जारा निकला

कहा फकीरों ने ये जग से 
सुख दुःख भाईचारा निकला

हथियारों ने कहा गरजकर
इन्सा खुद से हारा निकला

चाँद नगर बैठी बुढ़िया का
को न साथी सहारा निकला
.
अंतिम शेर में ई और थी को गिरा कर पढ़ा है..
आशा है आप मेरी इस धृष्टता को क्षमा करेंगे 
सादर  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 8, 2014 at 12:48pm

आदरणीय गुमनाम जी इस बहर से ज्यादा वाकिफ नहीं हूँ  ग़ज़ल पसंद आयी ..ढेरो बधाई के साथ ..सदर

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 7, 2014 at 11:01pm
किसके गम का ये मारा निकला
ये सागर ज्यादा खारा निकला
kuchh kahne ko ji kartaa hai
कितना गम है दुनियाँ में कि हर
सागर का पानी खारा निकला ।।
बहुत अच्छी ग़ज़ल आदरणीय गुमनाम जी , बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service