For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक ग़ज़ल..दिन सुहाने आ गए.

*एक ग़ज़ल 

बारिशों का दौर आया दिन सुहाने आ गए है.
जल भरे बादल धरा को गुदगुदाने आ गए हैं.
++
झड़ चुकीं थीं पत्तियां सब दिख रहीं वीरान सी वो,
फूल फिर से डालियों पर...... मुस्कुराने आ गए है.
++
मंदिरों ने प्रार्थना की मस्जिदों ने दी अजानें,
रहमतों को मेघ लेकर जल गिराने आ गए हैं.
++
भीगते सारे महल औ. झुग्गियाँ भी तरबतर हैं,
आग से झुलसे शहर में गम मिटाने आ गए हैं.
++
कूलरों से मुक्त होकर झाँकतीं अब खिड़कियाँ हैं,
लोइ हल्की नर्म कम्बल.. कुन कुनाने आ गए हैं.
++
सूखती सी टोंटियों में ..फिर नई सी जान आई,
भर गए नल कूप फिर से जल लुटाने आ गए हैं.
++
बिक गए छाते हजारों झूमती बरसातियाँ हैं,
जूतियाँ ठेले रखे ......फेरी लगाने आ गए हैं.
++
पोलिथिन बहती हुईं सब नालियों में जा फसी थीं,
चल पड़े सैलाब घिर कर .....घर डुबाने आ गए हैं.
**हरिवल्लभ शर्मा दि.३०.०७.२०१४ 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 891

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 12:05pm

तर-तर करती हुई इस बरसती ग़ज़ल के लिए भीगी-भीगी बधाई..
बहुत खूब आदरणीय हरिभाईजी..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 2, 2014 at 3:04pm

बरसाती मौसम का बहुत सुंदर चित्र प्रस्तुत करती ग़ज़ल 

बधाई आ० हरिवल्लभ शर्मा जी 

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 31, 2014 at 9:03pm

आ हा ... बहुत उम्दा .... वाह वाह ... बधाई स्वीकार करें ... सादर ॥ 

Comment by harivallabh sharma on July 31, 2014 at 6:27pm

आदरणीय Madan Mohan Saxena साहब आपका हार्दिक आभार आपने उत्साह वर्धित किया ..स्नेह बनाये रखें सादर.

Comment by harivallabh sharma on July 31, 2014 at 6:25pm

आदरणीय नादिर खान साहब आपके द्वारा ग़ज़ल पर हौसला अफजाई की आपका सादर आभार शुक्रिया.मेहरवानी बनाये रखें..सादर.

Comment by harivallabh sharma on July 31, 2014 at 6:22pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब आभार, आपने अनुग्रह स्वीकार कर पुनः मार्ग दर्शन किया ..निवेदन है की शेर का अंतिम शब्द" थीं " नहीं लिख गया था जो जोड़ दिया गया है सादर..आपका स्नेह बनाये रखें..आभार.

Comment by Madan Mohan saxena on July 31, 2014 at 12:24pm

मंदिरों ने प्रार्थना की मस्जिदों ने दी अजानें,
रहमतों को मेघ लेकर जल गिराने आ गए हैं.
बहुत सुन्दर

Comment by savitamishra on July 30, 2014 at 11:31pm

बहुत सुन्दर

Comment by नादिर ख़ान on July 30, 2014 at 10:58pm

कूलरों से मुक्त होकर झाँकतीं अब खिड़कियाँ हैं,
लोइ हल्की नर्म कम्बल.. कुन कुनाने आ गए हैं.

वाह वाह अदरणीय हरिवल्लभ जी खूबसूरब मौसमी गज़ल कही आपने पानी से सराबोर ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 30, 2014 at 5:43pm

आ, हरि वलभ भाई ,

पोलिथिन बह/  तीं हुयीं सब /  नालियों में/  जा फसीं. --- इस मिसरे में दो मात्रा कम हैं , अंतिम  रुक्न  २१२ हो रहा है , अंत में , तब  लगाया जासकता है |
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
22 hours ago
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service