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चोर को पकड़ो ,सजा दो --डा० विजय शंकर

जिंदगी एक दंड है , अपराध है
गर नहीं कानूनों का साथ है
गरीबी एक नामुमकिन सी चीज है
हर पैदा होने वाला देश का नसीब है
ये देश ये दुनिया किसी की जागीर नहीं है
खिलाफ आदमी कानून बन जाए , सही नहीं है
न धरती तुम्हारी न पानी तुम्हारा
न यहां कोई मिलकियत तुम्हारी है
टैक्स लो और काम करो
चोर को पकड़ो , और सजा दो .
लोगों का जीवन आसान करो .
शासन करना लाज़िम है पर
हुक्म बजाने के न अरमान धरो .

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment by Dr. Vijai Shanker on July 28, 2014 at 6:44pm
आदरणीय डॉ o आशुतोष मिश्रा जी , आपको रचना पसंद आई , बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 4:35pm

आदरणीय विजय भाई ..रचना के माध्यम से आपने बहुत उत्क्रिश मशविरा दिया है ..इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 28, 2014 at 2:50pm
आदरणीय गिरिराज जी , कहते रहना चाहिए , पता नहीं कब उनको ख्याल आ जाए।
बधाई के लिए धन्यवाद .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2014 at 12:10pm

आदरणीय विजय भाई , व्यवस्था को वाजिब सीख दी है आपने । आपको बहुत बधाई इस रचना के लिये !!

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 27, 2014 at 8:17pm
आदरणीय गोपाल नारायण जी , आप रचना से सहमत हैं , अच्छा लगा . मनुष्य मनुष्य का जीवन कठिन और आसान करता है , यहां व्यवस्था से यही अपेक्षा की गयी है.
दैवीय स्थितियों पर तो अभी हमारा वश है ही नहीं .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 27, 2014 at 8:08pm

विजय जी

विडंबना तो यही है यह झीवन हे तो आसान  नहीं होता  i  आर्ष  ग्रन्थ भी कहते है भोगो  i इसीलिये तो भेजे गए हो , भुगतो i

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