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आई बरखा झूमती

कलियों का मुख चूमती

पवन झकोरे सर-सर करते

डाली –डाली झूमती

 

आँगन की महके है माटी

गमले में तुलसी लहराती

बैठ झरोके टुक –टुक देखूँ

भीगी मोरें नाचती

 

अंबर पर मेघों का पहरा

श्याम रंग फैला है गहरा

मेघों की धड़के है छाती

पपीहा टेर सुहाती

 

महक उठी कृषकों की पौरें

धीमी हो गई रहट की दौड़ें

गीली हो गई दिन और रातें

नई उमंगें झाँकती

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना मिश्रा बाजपेई 

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Comment

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Comment by kalpna mishra bajpai on July 22, 2014 at 12:04am

आदरणीय पाण्डेय सर।, आप का सुझाव सिर आँखों पर । आप ने रचना को समय दिया बहुत आभारी हूँ मैं /सादर

टुक टुक लिखने में गलती हो गई है ध्यान रखूंगी . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 11:03pm

आपकी प्रस्तुति के लिए सादर बधाइयाँ.

अभ्यासरत रहें आदरणीया. इससे कई तथ्य स्पष्ट होंगे.

एक बात और,  टूक-टूक  को टुक-टुक लिखते हैं. अवश्य ही यह ट्ंकण त्रुटि ही है. 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 19, 2014 at 8:27pm

सुन्दर रचना !

Comment by mrs manjari pandey on July 17, 2014 at 7:59pm
बरखा रानी जी अपना नाम सार्थक किया। भावपूर्ण प्रस्तुति
Comment by kalpna mishra bajpai on July 17, 2014 at 7:17pm

आ0 माहेश्वरी जी बहुत शुक्रिया /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 17, 2014 at 7:16pm

आ0 जितेंद्र जी बहुत शुक्रिया /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 17, 2014 at 7:16pm

आदरणीय धामी जी बहुत शुक्रिया /सादर 

Comment by Maheshwari Kaneri on July 16, 2014 at 6:37pm

बर्षा ऋतु का सुन्दर चित्रण किया है इसके लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ।आदरणीया कल्पना जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2014 at 11:37am

आ0 कल्पना जी गीत के माध्सम से बर्षा ऋतु का सुन्दर चित्रण किया है इसके लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 15, 2014 at 1:00am

बरखा ऋतू के आगमन पर बहुत सुंदर भाव पिरोये, बधाई आदरणीया कल्पना जी

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