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सबकी ऐसे गुजर गयी

सबकी ऐसे गुजर गयी

हिन्दू देखे ,मुस्लिम देखे इन्सां देख नहीं पाया
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में आते जाते उम्र गयी

अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
हर इन्सां की एक कहानी सबकी ऐसे गुजर गयी

अपना हिस्सा पाने को ही सब घर में मशगूल दिखे
इक कोने में माँ दुबकी थी , जब मेरी बहाँ नजर गयी

दुनिया जब मेरी बदली तो बदले बदले यार दिखे
तेरी इकजैसी सच्ची सूरत, दिल में मेरे उतर गयी

मौलिक और अप्रकाशित

मदन मोहन सक्सेना

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Comment

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Comment by Madan Mohan saxena on June 25, 2014 at 9:51am

बहुत शुक्रिया होंसला अफजाई के लिए

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 17, 2014 at 12:53pm

हिन्दू देखे ,मुस्लिम देखे इन्सां देख नहीं पाया 
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में आते जाते उम्र गयी

पता नहीं हम कब समझेंगे बड़ी उमरिया बीत गयी ...

सादर मदन मोहन जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2014 at 9:37pm

सुन्दर भाव पूएण रचना के लिये आपको बधाई , आदरणीय मदन मोहन जी ॥

Comment by Madan Mohan saxena on June 16, 2014 at 1:50pm
बहुमूल्य सन्देश के लिए आप सभी का तहे दिल से हार्दिक आभार
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2014 at 9:35am

एक  संवेदनशील रचना के लिए हार्दिक बधाई आ० मदन मोहन जी ,

Comment by DIWAS MISHRA on June 15, 2014 at 9:36pm

तेरी इकजैसी सच्ची सूरत, दिल में मेरे उतर गयी,

 आपने पते की बात कही है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 15, 2014 at 8:02am

बहुत ही संवेदनशील रचना बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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