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बचपन यार अच्छा था

जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था

बारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़री
भोले भाले चेहरे में सयानापन समाता था

मिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों
मिलाकर हाथ, पीछे से मुझको मार जाता था

सुना है आजकल कि बह नियमों को बनाता है
बचपन में गुरूजी से जो अक्सर मार खाता था

उधर माँ बाप तन्हा थे इधर बेटा अकेला था
पैसे की ललक देखो दिन कैसे दिखाता था

जिसे देखे हुआ अर्सा , उसका हाल जब पूछा
बाकी ठीक है कहकर वह ताना मार जाता था

मौलिक और अप्रकाशित

मदन मोहन सक्सेना

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2014 at 11:20pm

बचपन याने  जीवन के सबसे अच्छे पल, बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय मदन मोहन जी. हार्दिक बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on June 26, 2014 at 10:05pm

बचपन का दिन कौन भुला सकाता है भला.............

जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था

बारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़री
भोले भाले चेहरे में सयानापन समाता था......हार्दिक बधाई.

Comment by annapurna bajpai on June 25, 2014 at 6:07pm

बहुत खूब सुंदर । 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 25, 2014 at 12:32pm

सुना है आजकल कि बह नियमों को बनाता है 
बचपन में गुरूजी से जो अक्सर मार खाता था

बहुत ही सुन्दर मदन मोहन जी!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 24, 2014 at 10:57am

बचपन अच्छा था - पर प्रस्तुति के लिए बधाई 

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