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फतवा (लघुकथा) - प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

मौलवी साहिब के घर गहरी उदासी छाई हुई थी. उनके तीनो बच्चों को डॉकटरी जांच के दौरान पोलियों रोग से ग्रस्त पाया गया था. उम्र अधिक होने के कारण अब उन बच्चों का इलाज भी सम्भव नहीं था. अत: ज़िंदगी भर के लिए बच्चों के अपाहिज होने की कल्पना मात्र से ही हर कोई दुखी था. मोहल्ले के गरीब और निरक्षर परिवारों के दौड़ते भागते तंदरुस्त बच्चों को देखकर पढ़े लिखे मौलवी साहिब बार बार यही सोच रहे थे कि काश उन्होंने भी धार्मिक फतवों से ज्यादा अपने बच्चों की परवाह की होती। 

मौलिक / अप्रकाशित

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

०१-०३-२०१४

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:35pm

आदरणीय गुरुदेव श्री सौरभ सर जी, 

सादर 

मार्ग दर्शन हमेशा दीजिए 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:34pm

स्नेही वन्दना जी 

खुश रहिये 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:33pm

आदरणीय श्री जीतेन्द्र जी 

सादर आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:33pm

आदरणीय श्री केवल प्रसाद जी 

सादर आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:32pm

आदरणीय श्री भंडारी जी 

सादर आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:32pm

आदरणीय श्री बैद्यनाथ सारथि जी 

सादर आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:31pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी 

सादर आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:30pm

आदरणीय मयंक जी 

सादर आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 6:18pm

आपकी इस लघुकथा को मैं एक सचबयानी की तौर पर लूँगा.  ऐसी खरी-खरी के लिए आपके आगे नत-मस्तक हूँ, आदरणीय प्रदीपजी.

सादर

Comment by Vindu Babu on March 8, 2014 at 3:32am

आदरणीय कुशवाहा सर:

सही विषय चुना है आपने।

कई बार यही होता है और फिर पछताने से भी कुछ होने वाला नहीं रहता.

सादर बधाई आपको इस सम्प्रेष्ण के लिए आदरणीय।

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