For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धर्म अधर्म //कुशवाहा//

धर्म अधर्म

--------------

धर्म अधर्म

देशकाल की धुरी पर

नर्तन करता हुआ

ज्ञानियों / अज्ञानियों

की गोद में

पल पल मचलता

रंग बदलता

कुछ न कुछ कहता है

युग हो कोई

नयी बात नहीं

परोक्ष / अपरोक्ष

दिल के किसी कोने में

रावण रहता है

विष वमन

घायल तन मन

चिंतन  मनन

जन जन छलता है

न कर मन मलिन

न हो तू उदास

रख द्रढ़  विश्वास 

अत्याचारों  की

जब जब  अति होती है

हरी भरी वसुंधरा

पापों से रोती  है

होता कोई अवतार

अधर्म पर धर्म की

विजय होती है

मौलिक//अप्रकाशित//

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

8-1-2013

    

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 19, 2013 at 2:46pm

रचना ..धर्म अधर्म.. पर आपका स्नेह पा कर अभिभूत हूँ. स्वास्थ्य कारणों से प्रत्येक का अलग अलग आभार व्यक्त न कर कुछ समय तक सामूहिक आभार स्वीकार करें. में आपकी रचनाओं का आनंद तो ले रहा हूँ, पर कुछ कह नही पा रहा हूँ. क्षमा करेंगे. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 18, 2013 at 11:59pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी , 

बहुत सुन्दर सुगठित संयत प्रस्तुति..वाह !

हार्दिक बधाई 

Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 1:45pm

बहुत सुंदर विचार है खुशवाहा जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 7:52pm

इस सकारात्मक और सहज कविता के लिए हृदय से बधाई आदरणीय प्रदीपजी.
भावों का बहुत ही संयत और सुन्दर विन्यास हुआ है.
वाह वाह !
सादर
 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 17, 2013 at 12:15am

आदरणीय प्रदीप कुमार जी, इस सशक्त रचना के लिये दिल से बधाई. कथ्य, शिल्प, भाव सभी कुछ संतुलित, वाह !!!!!!

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 16, 2013 at 10:43pm
दिल के किसी कोने में

रावण रहता है

विष वमन

घायल तन मन

चिंतन मनन

जन जन छलता है

सत्य को उकेरती गतिमान रचना के लिये आदरणीय ापको बधाई
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 16, 2013 at 7:42pm

आदरणीय कुशवाहा सर जी,  वाह खूब सूरत।   धर्म की धुरी जिसके चारो ओर अधर्म फिरता है। सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 16, 2013 at 6:26pm

//धर्म अधर्म

देशकाल की धुरी पर

नर्तन करता हुआ

ज्ञानियों / अज्ञानियों

की गोद में

पल पल मचलता

रंग बदलता

कुछ न कुछ कहता है// वाह बहुत बढ़िया, आदरणीय कुशवाहा सर भावों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकार करें

Comment by Saarthi Baidyanath on October 16, 2013 at 2:05pm

उत्तम रचना ... कई रंगों को उकेरती, एक पठनीय रचना ! मुबारक !...:)

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 16, 2013 at 1:34pm

आदरणीय कुशवाहा सर जी वाह मन प्रसन्न हो उठा बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति आदरणीय हृदयतल से ढेरों बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

AMAN SINHA posted blog posts
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
10 hours ago
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
yesterday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Friday
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
Nov 7
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Nov 6
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Nov 6
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Nov 4
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service