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ग़ज़ल (ज़िंदगी के यज्ञ में खुद को हवन करना पड़ा)

ज़िंदगी के यज्ञ में खुद को हवन करना पड़ा 
आंसुओं से ज़िंदगीभर आचमन करना पड़ा....


मंज़िलों से दूरियाँ जब ,कम नहीं होती दिखीं 
क्या कमी थी कोशिशों में,आंकलन करना पड़ा .....


ऐसे ही पायी नहीं थी देश ने स्वतन्त्रता 
इस को पाने के लिए क्या क्या जतन करना पड़ा ...


जाने मुंसिफ़ की भला थी कौन सी मजबूरियां 
फैसला हक़ में मेरे जो दफ़अतन करना पड़ा.... 


किस तरह कृतत्व से व्यक्तित्व है ,आखिर जुड़ा 
इस विषय पर देर तक चिंतन गहन करना पड़ा ....


मोह,माया,वासना की कामना कोई न थी 
इश्क़ हमको आपसे बस आदतन करना पड़ा ...


काव्य रस का पान कर ,आनंद लेने के लिए 
मन लगा कर पाठकों को अध्ययन करना पड़ा ...

मौलिक व अप्रकाशित .... 

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Comment

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Comment by Ajay Agyat on April 9, 2014 at 7:27pm

आदरणीय गिरिराज जी ने सही फरमाया ... 

Comment by कल्पना रामानी on February 2, 2014 at 9:16pm

एक सुंदर और सार्थक गजल के लिए बधाई आपको आदरणीय अजय जी

Comment by Tilak Raj Kapoor on January 27, 2014 at 10:59pm

भाई वाह। लाजवाब।

Comment by ajay sharma on January 21, 2014 at 11:01pm

जाने मुंसिफ़ की भला थी कौन सी मजबूरियां 
फैसला हक़ में मेरे जो दफ़अतन करना पड़ा.... wah wah

Comment by ajay sharma on January 21, 2014 at 11:00pm

किस तरह कृतत्व से व्यक्तित्व है ,आखिर जुड़ा 
इस विषय पर देर तक चिंतन गहन करना पड़ा ....

 

ko is tarah bhi kaha ja sakta hai .......

किस तरह आमाल से क़िरदार है ,आख़िर जुड़ा
इस विषय पर देर तक चिंतन गहन करना पड़ा ....

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 3:14am

ज़िंदगी के यज्ञ में खुद को हवन करना पड़ा 
आंसुओं से ज़िंदगीभर आचमन करना पड़ा....


मंज़िलों से दूरियाँ जब ,कम नहीं होती दिखीं 
क्या कमी थी कोशिशों में,आंकलन करना पड़ा .....

वाह हुज़ूर क्या कहने ...



स्वतन्त्रता,  कृतत्व .. इन दो अल्फाज़ के वज्न पर पुनः गौर फरमाएं

Comment by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 6:02pm

खूबसूरत गजल , आ0 अजय जी बहुत बधाई आपको । 

Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 10:12am

आपका स्वागत है सुन्दर प्रस्तुति ............हार्दिक बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 12:41am

आपका स्वागत है आदरणीय. आपसे कुछेक पाठकों न सवाल किये हैं.

सादर

Comment by MAHIMA SHREE on January 14, 2014 at 10:09pm

मंज़िलों से दूरियाँ जब ,कम नहीं होती दिखीं 
क्या कमी थी कोशिशों में,आंकलन करना पड़ा ........ वाह बहुत खूब .. हार्दिक बधाई सर .सादर

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"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.…"
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