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अभी विश्राम कहाँ

कह पथिक विश्राम कहाँ

मंजिल पूर्व आराम कहाँ

 

रवि सा जल

ना रुक, अथक चल

सीधी राह एक धर

रह  एकनिष्ठ

बढ़ निडर .

अभी सुबह है, 

बाकी है अभी

दुपहर का तपना.

अभी शाम कहाँ,

मंजिल पूर्व आराम कहाँ.

 

चलना तेरी मर्यादा

ना रुक, सीख बहना

अवरोधों को पार कर

मुश्किलों  को सहना

आगे बढ़ , बन जल

स्वच्छ, निर्मल

अभी दूर है सिन्धु

अभी मुकाम कहाँ

मंजिल पूर्व आराम कहाँ ..

..... नीरज कुमार नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on December 20, 2013 at 6:56pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी ..  आपकी इस टिप्पणी के लिए . आप सब के साथ मुझे नित्य कुछ सीखने को मिलता है .. आप क्यों खेद व्यक्त करते हैं , खेद तो मुझे व्यक्त करना चाहिए कि मैं रूटीन से रूटीनी बने इस शब्द को भली भांति समझ नहीं पाया .. :) :) . चलिए इसी बहाने एक नया शब्द सीख गया .. स्नेह बनाये रखें ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 2:24pm

खेद है, भाईजी, मैं एक ऐसे शब्द के माध्यम से आपकी इस रचना पर संवाद स्थापित कर गया जो और उलझन ही पैदा कर रहा है. मैंने पिछले दिनों आपकी एक अति उन्नत रचना पढ़ी थी. उसके समक्ष यह कविता वहीवहीपन से लबरेज़ मिली. सो रुटीनी कह गया यानि ऐसी कविता जो किसी रुटीन की तरह अभिव्यक्त हो गयी है. इस शब्द के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. 

Comment by Neeraj Neer on December 20, 2013 at 9:20am

आदरणीय सौरभ जी मैं रूटीनी का अर्थ नहीं समझ पाया .. आपका हार्दिक धन्यवाद ..

Comment by Neeraj Neer on December 20, 2013 at 9:19am

आदरणीय जीतेन्द्र गीत जी आपका हार्दिक आभार ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 12:21am

यह तो एक रुटीनी ही हो गयी भाई.. !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 16, 2013 at 11:51pm

//चलना तेरी मर्यादा

ना रुक, सीख बहना

अवरोधों को पार कर

मुश्किलों  को सहना

आगे बढ़ , बन जल

स्वच्छ, निर्मल

अभी दूर है सिन्धु

अभी मुकाम कहाँ

मंजिल पूर्व आराम कहाँ ..//

निरंतरता का नाम ही तो जीवन है, सकारात्मक रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी

Comment by Neeraj Neer on December 16, 2013 at 8:37pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब हार्दिक आभार .. 

Comment by Neeraj Neer on December 16, 2013 at 8:36pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2013 at 5:46pm

सतत चलते रने की प्रेरणा देती आपकी रचना के लिये आपको बधाइय़ाँ !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 16, 2013 at 1:53pm

नीर जी

आगे बढ़ने की सतत प्रेरणा देती कविता अर्थपूर्ण  है i

आपको बधाई i

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