For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कवि का मन - (रवि प्रकाश)

छंद -15 गुरु अथवा 30 मात्राएँ (16 पर यति)

अम्बर कैसे झूला झूले,नदियाँ कैसे गाती हैं;
तारों की सौगातें ले कर,रातें मन बहलाती हैं।
सूरज के माथे पे आख़िर,किसके मद की लाली है;
अँगड़ाई लेते पत्तों पर,किसने शबनम डाली है।
किरणों के आभूषण पहने,भोरें क्यों इठलाती हैं;
कलियों की चटकीली गलियाँ,भौँरों को भरमाती हैं।
सुध-बुध अपनी खो कर कितना,दोपहरें अलसाती हैं;
दिन की पीड़ा हरते-हरते,साँझें क्यों सँवलाती हैं।
गुलमोहर की डाली से क्यों,चंदा उलझा रहता है;
आहें भर के पगला प्रेमी,तारों से क्या कहता है।
नैनों की बोली से प्रीतम,भोली को समझाता है;
सीने की धुकधुक से उठ के,सपना क्यों तुतलाता है।
राधा कोई मुरलीधर से,गुपचुप क्या बतियाती है;
बलखाती सी क्यों आती है,सहमी-सहमी जाती है।
फिर कोई मृगनयनी आ कर,पनघट पे क्या गाती है;
गगरी ले कर आते-जाते,आँचल क्यों उलझाती है।
अल्हड़ यौवन की साँसों में,क्योंकर ऐसी मस्ती है;
कजरारी आँखों में कब से,मतवालों की बस्ती है।
अब के सावन मनभावन में,कैसे बदरा बरसेंगे;
कजरा किसका बह जाएगा,किसके नैना तरसेंगे।
रस्ते-रस्ते रमता जोगी,पानी सा क्यों बहता है;
बंजारा इकतारा ले कर,दुनिया से क्या कहता है।
कितनी बातों से आलोड़ित,होता कवियों का मन है;
उलझन से रचना होती या,रचना में ही उलझन है।
साधारण सी हलचल से भी,प्रतिभा विचलित होती है;
कुछ के उत्तर उपजाती है,कुछ प्रश्नों को बोती है।
बासंती झोंकों में जैसे,बरबस कोकिल गाती है;
वैसे कवि के अंतरतम में,कविता भी मदमाती है।
लहरें,नदिया,सागर,मोती,दीपक,जुगनू,तारे हैं;
धीवर,नैया,आँसू,आशा,पावक है,अंगारे हैं।
भोला विस्मित बचपन जिसमें,हुलसाता नवयौवन है;
पतझर में भी सावन गाता,अलबेला कवि का मन है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 636

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on September 8, 2013 at 3:32pm
धन्यवाद जी !!!
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 6, 2013 at 9:06am

 सप्रेम राधे-राधे ॥ कुछ कविता ऐसी होती है, सब के मन को भाती है।  

रवि प्रकाश जी आपकी कविता भी उनमे से एक है, बधाई ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 12:58am

भाई रविजी, हृदय से बधाइयाँ.

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है.. बधाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 22, 2013 at 12:21pm

आदरणीय रवि भाई बेहद सुन्दर लाजवाब पंक्तियाँ बन पड़ी हैं आपने कई जगह प्रथम पंक्ति में है और द्वतीय पंक्ति नें हैं का प्रयोग किया किया है, इस पर ध्यान दें. बधाई स्वीकारें इस सुन्दर रचना पर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 21, 2013 at 4:56pm

सुंदर रचना हेतु बधाई आदरणीय रवि जी

Comment by Ravi Prakash on August 21, 2013 at 1:35pm
thanks bhandari Ji.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2013 at 12:29pm

रवि प्रकाश जी , लाजवाब रचना !! बहुत बहुत बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service