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मेरे दादाजी को श्रद्धांजली स्वरूप कुछ पंक्तियाँ  

पिता! 

तुम छत थे

ढह गये
तीव्र उम्र तूफान से
दरक गयीं दीवारें
लगाव ख़त्म
आपसदारी 'थी'
'है' नही
न कोई बचाव
धूप से
या बारिश से
शीत से
या गैरों से
न रहा घर
रह गया ढेर
ईंटों का
तुम थे 'एक छत'
हम 'चार दीवारें'
मिटा दिया हमने
अहसास
तुम्हारे होने का
तुम गये, शेष
एक प्रश्न
अवशेष
क्या दीवार के साये में
सुकून होगा
छत के साये सा ?
               - गीतिका 'वेदिका'

मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 4:43pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी! 

आपका कथन अकाट्य सत्य है,, बुजुर्गों की दी हुयी सीखें  ही  जीवन के सर्वाइव को आसान बनाती है|

सादर !! 

Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 4:41pm

आपका आभार स्नेही राम भैया! आपने रचना को सराहा  

Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 4:40pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी! 

आपका प्रदाय सम्बल आपके बडप्पन को दर्शाता है, आपके स्नेह की सदैव कृतग्य हूँ 

सादर!

Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 4:38pm

आदरणीय सौरभ जी! 

आपकी प्रतिक्रिया संतोष प्रदान करने वाली है, इस सुखद पुरुस्कार हेतु आभार हूँ!

सादर ! 

Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 4:36pm

आपका आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी! 

आपने रचना को सराहा !

Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 4:36pm

आदरणीया मीना पाठक जी! 

आपके सुविचार मेरी रचना को सार्थकता देते है!

आभार  

सादर गीतिका 'वेदिका'

Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 4:34pm

आदरणीया श्याम नारायण जी! 

आपने रचना सराह कर मुझे कृतग्य किया|

सादर!  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2013 at 1:03am

जिस ओट में छाँव मिलती है वही नियामत. इस रचना की पवित्रता ने मुग्ध किया है. 

बधाई

Comment by Abhinav Arun on July 31, 2013 at 7:06pm

बुजुर्गों का स्नेह और आशीर्वाद भाग्यवानो को मिलता है आदरणीया गीतिका जी ... और वह थाती है आने वाले वक्त के थपेड़ो से जूझने में बल देता है ...सुन्दर भावपूर्ण रचना के हार्दिक साधुवाद स्वीकारें और वंदना के in स्वरों में हम सबके स्वर आपके साथ ही शामिल हैं !!! सुन्दर कृति !!

Comment by वेदिका on July 31, 2013 at 4:59pm

आदरणीया महिमा जी! 

आदरणीय लक्ष्मण जी! 

आदरणीय जितेन्द्र जी! 

आपका बहुत बहुत आभार आपने रचना को के भाव को समझा 

कृपया ध्यान दे...

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