For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोचता हूँ

क्या होगा

इस नीले आकाश के पार

 

कुछ होगा भी

या होगा शून्य

 

शून्य

मन सा खाली

जीवन सा खोखला

आँखों सा सूना

या

रात सा स्याह

 

कैसा होगा सबकुछ

होगी गौरैया वहां?

देह पर रेंगेंगी

चीटियाँ?

 

या होगा सब

इस पेड़ की तरह

निर्जन और उदास;

सागर की बूँद जितना

अकल्पनीय

 

बिना जाए

जाना कैसे जाए

और जाने को चाहिए

पंख

पर पंख मेरे पास तो नहीं

 

चलो पंछी से पूछ आएं

गरुड़ से।

ढूँढते हैं गरुड़ को।

                 - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 644

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on August 1, 2013 at 11:31pm

आदरणीय सौरभ जी आपके शब्दों ने बहुत बल दिया। आपको रचना पसंद आयी, मेरा प्रयास सार्थक हुआ।
आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2013 at 1:26am

जब मैं था तो तू और तेरा संसार नहीं, जब तू और तेरा संसार है तो मैं नहीं.  असम्प्रज्ञात दशा के पार जाने का मनोभाव सभी जीना चाहते हैं. क्योंकि देही की सीमा के पार ही अनुभव और भाव के संसार का उन्मुक्त आकाश है.  किन्तु, देही की परिधि अपनी समस्त तथाकथित ज्ञानेन्द्रियों की सबल उपस्थिति के बावज़ूद भावदशा के संसार में सायास विचरण नहीं कर पाती.

मानवीय संवेदना के इस ऊहापोह को सार्थक शब्द मिले हैं.  विवश मनुज के विवशता के भाव को सुन्दरता से अभिव्यक्त करने के आपको हार्दिक बधाई, बृजेशजी.  बहुत सुन्दर कविता हुई है.

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश नीरज on July 31, 2013 at 5:40pm

आदरणीया प्राची जी आपके शब्दों ने मेरे प्रयास को सार्थकता प्रदान की है। आपका हार्दिक आभार!
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 31, 2013 at 10:31am

आदरणीय बृजेश जी 

आपकी दार्शनिकता और चिंतन प्रधान अभिव्यक्तियाँ बाँध लेती हैं... और उन्हें पढ़ना अब अनुभव सा होता जा रहा है...

दृश्य को पीछे छोड़ अदृश्य की तलाश में जाना.... पर उसके लिए भी चाहियें स्थूल पँख... अब यह उड़ान भरने के लिए पँख कहाँ से मिलें ....  ये तो गरुड ही बता सकता है... 

अनंत को जानने के लिए जिस तरह से इंगित का प्रयोग हुआ है उसपर आपको बहुत बहुत बधाई 

सदर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2013 at 8:58pm

सादर आभार ...आदरणीय 

Comment by बृजेश नीरज on July 27, 2013 at 8:45pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार! जीत से गीत बनने पर बधाई और शुभकामनाएं!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2013 at 8:40pm

आदरणीय बृजेश जी ,भावनात्मक रचना प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ..

Comment by बृजेश नीरज on July 26, 2013 at 7:43pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Meena Pathak on July 26, 2013 at 7:32pm

शून्य

मन सा खाली

जीवन सा खोखला

आँखों सा सूना

या

रात सा स्याह........................आदरणीय ब्रजेश जी दिल को छू गई आप की रचना | हार्दिक बधाई स्वीकारें, सादर 

Comment by बृजेश नीरज on July 26, 2013 at 5:17pm

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service