For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो कर सके तो कर अभी.. . // -- सौरभ

शिथिल मनस पे वार कर, जो कर सके तो कर अभी..
प्रहार बार-बार कर, जो कर सके तो कर अभी.. !

अजस्र श्रोत-विन्दु था मनस कभी बहार का
यही हृदय उदाहरण व पुंज था दुलार का
प्रवाह किंतु रुद्ध अब, विदीर्ण-त्रस्त स्वर लगें
सनातनी विचार के न तथ्य ही प्रखर लगें

मग़र किसी को दोष क्यों, हमीं युगों से सो रहे
असह्य फिर प्रहार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

कभी यही समाज था प्रबल, कि लोग शांत थे
विचारवान थे सभी, सुसभ्य गाँव-प्रांत थे
मग़र चली वो आँधियाँ सचेत तक बहक गये
रवां जहाँ सुतंत्र था, विचार तक दहक गये

समाज क्रुद्ध, राज भ्रष्ट, देख लोग पस्त हैं
न पार्श्व से पुकार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

सुरम्य घाटियों से देख जा रही प्रभा किधर
जघन्य पाप के विरुद्ध क्या करे दुआ असर
विकल पड़ा है व्यक्ति यों, कि त्राण है, न राह है
विचारशील के लिये न वृत्ति का प्रवाह है

झिंझोर दें, हुँकार कर.. . तमस प्रभाव दे मिटा
हुँकार जोरदार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

हृदय सन्देह लबलबा तभी लचर लिहाज़ हैं
न दीखते उपाय ही, अहं सने रिवाज़ हैं
विदग्ध राष्ट्र-भावना तभी प्रसूत भाव से
अमर्त्य वीर थे सदा प्रसिद्ध हम स्वभाव से

विद्रोह-ज्वाल से भरे विचार रौद्र झोंक दे 
प्रघात बेशुमार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

*****************

--सौरभ

Views: 826

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 7:14pm

डॉ, दिलीप मित्तल,  आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा इस हेतु मैं आपका आभारी हूँ.

हार्दिक धन्यवाद

Comment by Dr Dilip Mittal on March 31, 2013 at 6:53pm

देश को आज इस तरह के जोश की जरुरत है, 

जोशपूर्ण कविता के लिए बधाई 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 12, 2012 at 4:30pm

भाई जवाहर लाल सिंहजी, आपको मेरी रचना ’जो कर सके तो कर अभी..’ पसंद आयी, यह मेरे लिए भी परम संतोष की बात है. आप द्वारा हुए उत्साहवर्द्धन हेतु आपका अत्यंत आभारी हूँ.

प्रस्तुत रचना पर आपने अपनी प्रतिक्रिया दी, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, भाईजी.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 4:55am

आदरणीय सौरभ महोदय, नमस्कार!

एक एक पंक्ति जोश जगाती हुई ! आपका हार्दिक नमन!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 15, 2012 at 10:22am

भाई फूलसिंह जी आपको प्रस्तुत गीत के अंतर्निहित भाव पसंद आये, मेरा श्रम सार्थक हुआ.

हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 15, 2012 at 10:21am

आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपकी प्रशंसा और शुभ विचार से रचना कुछ और धनी हुई है.

आपका हार्दिक आभार.

Comment by PHOOL SINGH on November 12, 2012 at 1:25pm

पाण्डेय जी प्रणाम.......

सुंदर अतिसुंदर भावपूर्ण रचना  ......"सपरिवार सहित आपको शुभ दीपावली"

फूल सिंह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2012 at 8:33pm

आदरणीय सौरभ जी इस गीत को पढ़कर तो एक निष्क्रिय निश्चेष्ट ह्रदय में भी उबाल आ जाएगा  शब्द दर शब्द कितना ओज पूर्ण प्रवाह देखते ही बनता है आज के वक़्त में आज की पुकार है ये रचना 

ये पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगी  

हृदय सन्देह लबलबा तभी लचर लिहाज़ हैं 
न दीखते उपाय ही, अहं सने रिवाज़ हैं 
विदग्ध राष्ट्र-भावना तभी प्रसूत भाव से 
अमर्त्य वीर थे सदा प्रसिद्ध हम स्वभाव से 

विद्रोह-ज्वाल से भरे विचार रौद्र झोंक दे  
प्रघात बेशुमार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

 सच में भावनाओं का सैलाब  भरा है इस गीत में बहुत बहुत बधाई इस उत्कृष्ट गीत के लिए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2012 at 7:40pm

आदरणीय सतीशभाईजी, आपका अनुमोदन मेरे लिये खास अर्थ रखता है.

आपका सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2012 at 7:34pm

रचना की मूल भावना को स्वर देने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ, सीमाजी.  कहना न होगा, शिथिल मनस ही समस्त विसंगतियों के जीते जाने का कारण है.  आपको प्रस्तुति के कथ्य, भाव व प्रयास रुचिकर लगे यह अपार संतोषकारी है. शब्दों के चयन के क्रम में कोई विशेष आग्रह तो नहीं बस अनायास ही सही तत्सम और देसज शब्द प्रवाह में आ जाते हैं . ..

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"जी बहुत शुक्रिया आदरणीय चेतन प्रकाश जी "
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
8 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
8 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service