For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- द्वितीय खंड (2)

गंगा, (ज्ञान गंगा व जल  गंगा) दोनों ही अपने शाश्वत सुन्दरतम मूल  स्वभाव से दूर पर्दुषित व  व्यथित,  हमारे काव्य नायक 'ज्ञानी' से संवादरत हैं। 

अब यह सर्वविदित है कि मनुष्य की तमाम विसंगतियों, मुसीबतों, परेशानियों   का कारण उस का ओछा ज्ञान है जिसे वह अपनी तरक्की का प्रयाय मान रहा है. इसी ओछे ज्ञान से मानव को निकालना और सही व ज्ञानोचित अनुभूति का संप्रेष्ण करना अब ज्ञानि का लक्ष्य है. इस के लिये उस ने मानवीय अधिवासों में जा कर प्रवचन देने का मन बना लिया है.

प्रस्तुत श्रंखला उन्हीं प्रवचनों का काव्य रूपांत्र है....

ज्ञानी का दूसरा प्रवचन (ज़ारी  )

(लड़ी जोड़ने के लिए पिछला ब्लॉग पढ़ें....) 

2.

अनुभूति तो थी समझ से परे

मन व बुद्धि की सीमा से परे

अनुभूति तो ञैकालिक थी

अनुभूति तो सर्वकालिक थी

समझ मन की पकड़ में थी

अनुभूति पकड़ में आती न थी

तर्क दलील विचार से परे

कुछ तो था जो बच जाता था

अहम् ग्रस्त मन की भूमि को छोड़ आगे निकल जाता था...

ऐसे ही जल की गंगा

तो केवल बादलों में बसी थी

बादलों में बसी गंगा सूखी मरू को

छोड़ आगे निकल जाती थी

मानव कितना पसीना बहाये-

पसीने से गंगा तो न बन पाती थी

सूखे मरू में बसे लोग

स्वर्ग की ओर ताकते रहते थे

स्वर्ग में बसी गंगा की

वे दंतकथायें बनाते रहते थे-

‘गंगा तो इंद्र राज्य की अप्सरा है, भैया!

वह यूं न धरणि पे आवेगी

कोई भारी उपकर्म करना होगा

तभी सूखी धरा कुछ दे पावेगी'

तो वे किसी भारी उपकर्म की योजना में खो जाते थे

समय और सीमा में बंधे वे लघु मानव

किसी महा मानव की कलपना करते सो जाते थे

जो उन के लिये आवारा बादलों को मनाने के लिये तैयार हो जाये

जो उन के लिये सहर्ष गंगा को लाने के लिये तैयार हो जाये

या कभी यूं हो जाता कि वर्षा आती तो थी धरती पर

छुट पुट नालों में बह कर

बेकार हो जाती थी

और शेष वर्ष भर जल हीन लोग सूखी मरू को ताकते रहते

या उन सूखे नालों को

जिन में अमुल्य गंगा बह जाती थी

ऐसे में किसी भागिरथ सरीखे महामानव का

उस सूखी मरू में गंगा लाने को

वचनबद्व होना आष्चर्य न था

जो केवल वर्षा ऋतु में ही नहीं

साल भर जलहीन लोगों को जल मुहैया करवा सके

गंगा धरणि पर ला सके

अब स्वर्ग में बसी गंगा के

बादलों में रची गंगा के

अपने ही सपने थे

वह धरती पर आना न चाहती थी

उस ने तय कर लिया था

यदि प्राकृति के नियमों ने ज़ोर डाला भी तो

अपने बादलों को वह कह देगी

पर्वत श्रंखलायों पर बरसायेगी

पेडों के झुंडों पर,

या उंची बर्फ लदी चोटियों पर

मैदानों में यहां मानव ने पेडों को काट कर

अपमानित किया प्राकृति को,

उसे उस की उदण्डता का दंड देगी

बूंद बूंद के लिये तरसायेगी

धरती पर आने का उस का मोल हिमालय से कम न था

शिव सरीखे हिमालय ने हामी भरी

तो गंगा प्रसन्नतापूर्वक धरती पर आने को तैयार हो गई

बादलों को खींच लाई

पर्वतमालायों तक

खूब बरखा बन कर बरसी

इतना ज़ोर इतना शोर

पर कोई धारा न बनी न कोई छुट पुट नाला

पूरी की पूरी समा गई गंगा

महाहिमालय महाशिव की महाजटायों में

पेड पौद्वों की टहनियों में जडों में लताओं में

उलझ गई गंगा

वनस्पति जगत में

समा गई पूरी ही गंगा

सब अहम धुल गया

पर लहजा नरम न हुआ

बोली शिव से-

(शेष बाकी)

Views: 408

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 24, 2013 at 9:41pm

Dhanyavaad  ram shiromani pathak ji

Comment by ram shiromani pathak on March 24, 2013 at 1:39pm

kya kahane apke in vichaaro ko ////// uttam ati uttam adarneey बहुत बहुत साधूवाद!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service