For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल -- हो रहा है फिर उजाला इस शहर में !!!

हो रहा है फिर उजाला इस शहर में,
जल उठी है मोमबत्ती मेरे घर में ।

आँधियों के पैर कतराने लगे हैं,
है समंदर आस का अब हर नजर में ।

देखकर कोंपल नयी खुश हो गये हम,
शेष है आशा घनी बूढ़े शजर में ।

शाम से महसूस होती है थकावट,
लौट आती है जवानी, नव सहर में ।

यूँ मिला किरदार जीवन का 'सलिल' को,
गीत गम का गुनगुनाया भी बहर में ।

Views: 630

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 17, 2013 at 7:14pm

आदरणीय सौरभ जी,  आप जैसे जानकार अग्रज/मित्र की टिप्पणी पाकर (मुझ जैसे)  नये (और अल्पज्ञानी) रचनाकार को कितना सुकून मिलता है, बयाँ नहीं कर सकता ।   :)


आपको गज़ल अच्छी लगी, मेरा गज़ल कहने का मकसद साकार हुआ ।

आगे भी आपसे एवम OBO परिवार के अन्य मित्रों से मार्गदर्शन और सहयोग की उम्मीद में....

--- आशीष 'सलिल'  :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2013 at 8:00pm

विलम्ब से इस सुन्दर प्रस्तुति पर आने के लिए क्षमा चाहता हूँ, भाई आशीष नैथानी सलिलजी.

आपकी ग़ज़ल मतला से मक्ता तक एक विशेष अंदाज़ में है और आपके सुन्दर प्रयास का सशक्त बखान है. विशेषकर मक्ते के लिए मैं बार-बार धन्यवाद कह रहा हूँ -

यूँ मिला किरदार जीवन का 'सलिल' को,
गीत गम का गुनगुनाया भी बहर में । ....  वाह, सलिल जी वाह !

बह्र को बहर कहना विशेष रूप से भाया है.

शुभेच्छाएँ.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 12, 2013 at 10:17pm

शुक्रिया आदरणीय गणेश जी ! गजल को बहर में लिखना सीख रहा हूँ और आप सभी से मार्गदर्शन की आशा रखता हूँ ।
गजल पसन्द करने के लिये एक बार पुनः धन्यवाद ।  :)


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 12, 2013 at 8:37pm

देखकर कोंपल नयी खुश हो गये हम,
शेष है आशा घनी बूढ़े शजर में ।

वाह वाह, बहुत ही सुन्दर कहन, सभी अशआर खुबसूरत निकाले हैं, अच्छी ग़ज़ल आशीष नैथानी जी , दाद कुबूल करें |

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 12, 2013 at 11:59am

भाई 'अनन्त जी' गजल पसन्द करने और हौसला-अफजाई के लिए तहे-दिल से शुक्रिया ।

आपने हर शेर पर दाद लिखी, अद्भुत लगा ।  :-)

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 12, 2013 at 11:17am

हो रहा है फिर उजाला इस शहर में,
जल उठी है मोमबत्ती मेरे घर में । बढ़िया

आँधियों के पैर कतराने लगे हैं,
है समंदर आस का अब हर नजर में । वाह वाह

देखकर कोंपल नयी खुश हो गये हम,
शेष है आशा घनी बूढ़े शजर में । क्या बात है

शाम से महसूस होती है थकावट,
लौट आती है जवानी, नव सहर में । मजेदार

यूँ मिला किरदार जीवन का 'सलिल' को,
गीत गम का गुनगुनाया भी बहर में । सुन्दर अति सुन्दर

मित्रवर अच्छी गज़ल बन पड़ी है, सभी के सभी अशआर खूबसूरत हैं दिली दाद कुबूलें. सादर

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 11, 2013 at 10:05pm

शुक्रिया शुभ्रा जी !

Comment by shubhra sharma on January 11, 2013 at 9:00pm

गीत गम का गुनगुनाया भी बहर में,

वाह सलिल जी सुन्दर पंक्ति,

 हम भी जीते है बेमन से इस शहर में 

काश | कुछ कम हो गम किसी पहर में 
......................शुभ्रा 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service