For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बारिश की धूप

सूरज कर्कश चीखे दम भर
दिन बरसाती
धूल दोपहर.. .।

उमस कोंसती
दोपहरी की
बेबस आँखों का भर आना
आलमिरे की 
हर चिट्ठी से
बेसुध हो कर फिर बतियाना.. .

राह देखती
क्यों ’उस’ की
ये
पगली साँकल
रह-रह हिल कर ।

चुप-चुप दिखती-सी
पलकों में
कबसे एक
पता बसता है
जाने क्यों
हर आनेवाला 
राह बताता-सा लगता है

पलकें राह लिये जीतीं हैं 
बढ़ जाता
हर कोई सुनकर ।

गुच्ची-गड्ढे
उथले रिश्ते
आपसदारी कीचड़-कीचड़
पेड़-पेड़ पर दीमक-बस्ती 
घाव हृदय के बेतुक बीहड़.. .

बोझिल क्षण ले
मन का बढ़ना
नम पगडंडी
सहम-बिदक कर ।

*******************
--सौरभ

Views: 902

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2012 at 12:23am

शिखा कौशिकजी, आपको प्रस्तुति रुची, इस हेतु मैं आपके प्रति हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ. परस्पर सहयोग बना रहे, शिखाजी.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2012 at 12:20am

डॉ.प्राची, आपकी गुण-ग्राहकता को मेरा नमन. आपका सहयोग बना रहे.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2012 at 12:19am

भाई गौरव अजीतेन्दु, आपको मेरा नवगीत पसंद आया, हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2012 at 12:18am

आदरणीय उमाशंकर जी, आपको मेरा नवगीत पसंद आया, यह मुझे भी बहुत रुचा है. लेकिन यह इतना अच्छा लगा है तो सही कहिये भाईजी मेरे अंदर का रचनाकार डर भी रहा है. फिर भी कोशिश करूँगा कि आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतर सकूँ.  सहयोग बना रहे, आदरणीय.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2012 at 9:07am

सीमाजी, आपका एक बार फिर से आभार मान रहा हूँ. आपने वस्तुतः इस रचना के मर्म को छुआ है. यह सही है कि बिम्ब का प्रयोग अवश्य कोई रचनाकार करे किन्तु उन बिम्बों के मायने पाठक अपनी समझ और अनुभव से ही स्वीकार करते हैं. इसमें दो मत नहीं कि आप के अन्दर मात्र एक प्रस्तुतकर्ता और रचनाकार ही नहीं एक जागरुक और संवेदनशील पाठक भी साहित्य के रस का उतना ही आनन्द लेता दीखता है. और हर रचनाकार का लक्ष्य रचनाओं के लिहाज से एक पाठक ही होता है.

इस रचना को आपका सादर सहयोग मिला, यह रचना समर्थवान हुई है.  सादर

Comment by shikha kaushik on October 1, 2012 at 1:38am

सुन्दर शब्द चयन के साथ साथ सार्थक भावों की अभिव्यक्ति ने इस नवगीत को पाठकों के आकर्षण का केंद्र बना दिया है .सार्थक प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 22, 2012 at 10:29am

आदरणीय सौरभ जी,

यह गीत बेहद सुन्दर है, मै सिर्फ यह कहना चाह रही थी कि, आपकी रचनाओं कि गहनता और सोच के विस्तार का छोर पाना, मुझ जैसी सामान्य मति की पाठिका के लिए आसान  नहीं... जब समझ में आयी रचना तो हर पंक्ति नें ठहरने को बाध्य कर दिया.... बहुत सुन्दर गीत रचने हेतु हार्दिक बधाई पुनः संप्रेषित है. 
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 22, 2012 at 8:06am

आदरणीय गुरुदेव...........सुन्दर रचना........बधाई स्वीकार करें.........

Comment by UMASHANKER MISHRA on September 22, 2012 at 1:21am

आदरणीय सौरभ जी 

मैंने पहली बार आपके इस प्रकार के नवीन श्रेणी के आधुनिक कविता  के सृजन को देखा और परखा है 

मै पुनः कह रहा हूँ मुझे आपकी यह रचना मुझे इतनी अच्छी लगी की मेरे पास शब्द नही है 

मैंने इस रचना की चर्चा अपने मित्रों से भी की मैंने उनसे आग्रह भी किया की एक बार ब्लॉग 

में सौरभ जी की रचना को जाकर देखो कविता क्या होती है 

ऐसे भाव सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की रचनाओं में देखने को मिलते है 

 भले आप को मेरी बात अतिशयोक्ति पूर्ण लगती हो इसमें कुछ भी अतिसय नहीं है 

यह अलग बात है आपने क्या सोच कर लिखा है और मै ने उसे किस रूप में समझा है 

मुझे याद है की निराला जी की एक कविता में पाठकों में विवाद हो गया था वह कविता थी 

वह तोडती पत्थर 

देखा उसे मैंने इलहाबाद के पथ पर 

इस रचना में कवि ने उस मजदूर स्त्री का जो चित्रण प्रस्तुत किया था उस पर विवाद हुवा 

कवि की कल्पना कुछ और थी...   विवाद का विषय कुछ और...  पत्थर तोडती स्त्री के  चित्रण  पर विवाद हो गया था 

बहर हाल आपकी रचना के विषय में यही कहूँगा 

इस समय  में ऐसे रचना कार विरले ही होंगे

पुनः आपके प्रति मेरी सदभावना पूर्ण बधाई

Comment by seema agrawal on September 22, 2012 at 12:41am

आलमिरे की  
हर चिट्ठी से 
बेसुध हो कर फिर बतियाना.........लंबी बरसात के बाद वस्तुओं को  हर वर्ष ही धूप में सुखाते हैं  बहुत प्यारी सी बात महसूस करके .........................................कही आपने 

सौरभ जी जिस तरह आप ने धूप के व्यवहार को मानवीय व्यवहार के सामानांतर  रख कर प्रस्तुत किया है वह ही रचना को अर्थवान  और समर्थवान कर रहा है मैंने इसी उद्देश्य से निम्न पंक्तियाँ उदृत की थीं 

गुच्ची-गड्ढे 
उथले रिश्ते 
आपसदारी कीचड़-कीचड़ 
पेड़-पेड़ पर दीमक-बस्ती  
घाव हृदय के बेतुक बीहड़..

बोझिल क्षण ले 
मन का बढ़ना 
नम पगडंडी 
सहम-बिदक कर .........वाह ........

कुछ छूट गया हो तो और समझाइये 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service