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प्रेम अगन को बांधो कितना,..

लाख झूठ चाहे स्वर बोलें,
मौन मगर सच कह जाये |
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये ||

ये प्रेम हुआ ये कृष्ण हुआ,
न पहरों से है झुक पाता|

जो बन सुगंध हो चुका व्याप्त,
कैसे हाथों में रुक जाता||

तुम कई लगा लेना बंधन,
बहना है इसको बह जाये|
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये||1||

बीज घृणा के बोने वाले,
भ्रम के कितने यंत्र करोगे|
जिस आश्रय में जीवित है जग,
क्या उसको परतंत्र करोगे||

तोड़ ही दो अब घृणा का घट वो,
ये भीति महल भी ढह जाए|
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये||२||

-पुष्यमित्र उपाध्याय

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Comment by Pushyamitra Upadhyay on September 23, 2012 at 9:55pm

aap sabhi mitron ka kotishah dhanyavaad ....aapna sneh mere liye prernadayak hai......aapke aashish ki humesha kaamna karta hoon...yu hi is anuj par prem bnaye rakhiye....

Comment by Rekha Joshi on September 23, 2012 at 7:25pm

तोड़ ही दो अब घृणा का घट वो,
ये भीति महल भी ढह जाए|
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये||,खूबसूरत रचना पुष्यमित्र जी ,हार्दिक बधाई 

Comment by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 1:45am

अदभुत रचना पुष्यमित्र उपाध्याय जी , बहुत बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 22, 2012 at 12:07pm
वाह भाई श्री पुष्यमित्र उपाध्याय सुंदर भाव प्रेम तो अमर है, और इसीलिए आपकी ये पंक्तिया भा गयी -

ये प्रेम हुआ ये कृष्ण हुआ,न पहरों से है झुक पाता|

जो बन सुगंध हो चुका व्याप्त,कैसे हाथों में रुक जाता||

हार्दिक बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2012 at 10:06am

//बीज घृणा के बोने वाले,
भ्रम के कितने यंत्र करोगे|
जिस आश्रय में जीवित है जग,
क्या उसको परतंत्र करोगे||//

बहुत ही सार्थक रचना, एक सन्देश की लकीर खीचने में कामयाब है यह रचना, बहुत बहुत बधाई पुष्यमित्र जी, उम्मीद है कि आगे भी आपकी रचनाओं एवं अन्य सदस्यों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों से हम सभी लाभान्वित होते रहेंगे |

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