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मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll

एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ l
याद में पा गया वो ख़ुशी छोड़ दूँ l
किस तरह मैं भुलाऊं तुम्हें  ऐ प्रिये 
मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll
याद में घुट रहा, मृत्यु आ जाएगी 
जिस  तरह जी रहा क्या वो पा जाएगी
ज्योति जीवन की ले कर चलेगी तभी
सब अँधेरा दिखेगा लजा जाएगी ll
राह जीवन की अपनी किधर मोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll


याद क्या आ गयी होंठ यूँ हिल गए 
ज्यों मरुस्थल में लाखों कमल खिल गए 
जग गए आंख में स्वप्न सोये हुए
एक पल को  दिखे धुल में मिल गए ll
किन्तु खिलते तो हैं किस तरह तोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll


याद बनती रही याद मिटती रही 
आँख की पालकी में सिमटती रही 
याद ही बाद में अश्रु बन बह पड़ी
वो लताओं सी मन से लिपटती रही ll
याद के ये नयन किस तरह फोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll


याद मजधार है याद पतवार है 
याद के रूप में झाँकता प्यार है 
याद दिल से निकल गीत में ढल रही
याद जीवन की वीणा की झंकार है ll
याद के तार को याद से जोड़ दूँ 
किस तरह मैं भुलाऊं तुम्हें  ऐ प्रिये 
मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 22, 2012 at 12:44pm

विवेक मिश्र जी, खुबसूरत भावों को सहेजा है आपने, बधाई स्वीकार करें |

Comment by MAHIMA SHREE on May 18, 2012 at 9:53pm
याद बनती रही याद मिटती रही 
आँख की पालकी में सिमटती रही 
याद ही बाद में अश्रु बन बह पड़ी
वो लताओं सी मन से लिपटती रही ll
याद के ये नयन किस तरह फोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll


याद मजधार है याद पतवार है 
याद के रूप में झाँकता प्यार है 
याद दिल से निकल गीत में ढल रही
याद जीवन की वीणा की झंकार है ll
याद के तार को याद से जोड़ दूँ 
किस तरह मैं भुलाऊं तुम्हें  ऐ प्रिये 
मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll

आदरणीय विवेक जी , नमस्कार ..अति सुंदर अभिवयक्ति बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2012 at 9:30pm

विवेक मिश्र जी बहुत बेहतरीन रचना ...बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 18, 2012 at 5:19pm

याद बनती रही याद मिटती रही 

आँख की पालकी में सिमटती रही 
याद ही बाद में अश्रु बन बह पड़ी
वो लताओं सी मन से लिपटती रही ll
याद के ये नयन किस तरह फोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll
sundar bhav, rachna hetu badhai
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 9:52pm
याद क्या आ गयी होंठ यूँ हिल गए 
ज्यों मरुस्थल में लाखों कमल खिल गए 
जग गए आंख में स्वप्न सोये हुए
एक पल को  दिखे धुल में मिल गए ll
सुंदर साहित्यिक रचना के आपको कोटि कोटि बधाइयाँ ! बहुत उम्दा !!
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 9:51pm

waah kya baat hai bahut sundar saahab ,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by Rekha Joshi on May 17, 2012 at 9:49pm

याद बनती रही याद मिटती रही 

आँख की पालकी में सिमटती रही 
याद ही बाद में अश्रु बन बह पड़ी
वो लताओं सी मन से लिपटती रही ll
याद के ये नयन किस तरह फोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll
ati sundr bhaav ,badhai

Comment by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 17, 2012 at 9:48pm

एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ l

याद में पा गया वो ख़ुशी छोड़ दूँ l
किस तरह मैं भुलाऊं तुम्हें  ऐ प्रिये 
मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll
"वाह वाह वाह ! बहुत खूब

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