होठों से छुआ भी
खेलती उँगलियों
में रही...
अस्तित्व मेरा
उड़ गया
धुंए का ओढ़ कर
सफ़ेद कफ़न
और
रोंदी हुई
जूते के तले से
पड़ी हुई है...
मेरी लावारिस-
- लाश...
© AjAy Kum@r
Comment
Abhaar Vandana ji evam Rekha ji....
होठों से छुआ भी
खेलती उँगलियों
में रही...
अस्तित्व मेरा
उड़ गया
धुंए का ओढ़ कर
सफ़ेद कफ़न
badhiya bhaav,badhaai
Baagi ji namaskaar,
Baat ki gahraai ek gahri soch vala vyakti hi samajh pata hai, aapne kavita ke marm ko samjha, main abhari hoon aapka....
Aadarniye Kushwaha ji, main to aapse umar aur tajurbey mein bahut chhota hoon, kripya sharminda na karein, aapko kavita pasand aayi mera likhna sarthak hua...hridye se abhaar vyakt karta hoon...
Bahut bahut shukriya Mahima ji, aapke ye tareef bhare shabd mujhko isi Kavita ka teesra part likhne ki prerna de rahe hain...
जूते के तले से
पड़ी हुई है...
मेरी लावारिस-
- लाश...
बहुत खूब अजय जी, कम शब्दों में गहरी बात, बधाई आपको |
aadarniy ajay ji, saadar
kamal kar diya. badhai. jitni baar padh raha hoon utna hi aanand mil raha hai. darshan bhi chupa hai.
Bahut Bahut dhanyavaad Bhramar ji,
Hausla afzahi ka shukriya Rajesh ji...
vaah bahut sundar.sigaratte ka anjaam.
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