For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता = कहाँ आज़ाद हैं हम

कविता = कहाँ आज़ाद हैं हम

कहाँ आज़ाद हैं हम

हजारों हर तरफ ग़म

भ्रष्टाचार के टीले - पहाड़

और जनता की नित हार

अवनति का शोर 

घुप्प अन्धेरा घोर 

कहाँ उम्मीद 

गहरी नींद 

हुक्काम सो रहे 

हम रो रहे

यही थी तुम्हारी कल्पना ?

रामराज की ऐसी अल्पना ??

गरीबी अमीरी की ऐसी खाई

प्याज रोटी की  महंगाई

हमारी हाय में अब स्वर कहाँ है ?

हज़ारों प्रश्न हैं उत्तर उत्तर कहाँ है ??

                           == अभिनव अरुण

 

  

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on September 6, 2011 at 1:59pm

आदरणीय सर्वश्री अम्बरीश जी एवं आशीष जी हार्दिक आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए उत्साहवर्धन है |शुक्रिया !

Comment by आशीष यादव on September 5, 2011 at 5:24pm

हुक्काम सो रहे 

हम रो रहे

यही थी तुम्हारी कल्पना ?

रामराज की ऐसी अल्पना ??

बिलकुल आज हकीकत पर कविता है|
बधाई

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 4:06pm

//हुक्काम सो रहे 

हम रो रहे

हमारी हाय में अब स्वर कहाँ है ?

हज़ारों प्रश्न हैं उत्तर उत्तर कहाँ है ??//

वाह भाई अरुण जी वाह ! आपने इन चन्द पंक्तियों में सभी कुछ कह डाला ! बहुत बहुत बधाई मित्र !

Comment by Abhinav Arun on August 31, 2011 at 9:20am

आदरणीय मोनिका जी आप की टिप्पणी स्वयमेंव एक काव्य रचना है प्रोत्साहित करती | साधुवाद !! आभार !!

Comment by monika on August 31, 2011 at 1:38am

बहुत सारे सवाल खड़े करती हे ये कविता और सोचने पर मजबूर हो जाते हे हम की हमारी आज़ादी क्या वाकई आज़ादी हे ....? हम तो आज भी गुलाम ही हे.

"करना हे घेराव तो दुखो का घेराव करो
बंद ही जो होना हे भ्रष्टाचार बंद हो
तोड़ फोड़ करनी हे तो तोडो वर्गभेद जिससे
आदमी पर आदमी का अत्याचार बंद हो"

Comment by Abhinav Arun on August 17, 2011 at 2:45pm

thanks rohit jee and thanks a lot to atendra jee !

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 17, 2011 at 12:27pm

हमारी हाय में अब स्वर कहाँ है ?

हज़ारों प्रश्न हैं उत्तर उत्तर कहाँ है ??

 

   sabse pahle aapko sadar pranaam ...aapne apni es kavita men us baat ko ujagar kiya hai jo hame aazadi ke baad bhi anekon prasn hamaare sammukh khada hai parantu uttar ke abhaw men aaj bhi prasnchinh  laga hua hai.............

      aapki rachana achhi lagi ....abhut bahut badhai.........

 

Comment by Rohit Sharma on August 17, 2011 at 11:00am

बेहतर

Comment by Abhinav Arun on August 16, 2011 at 12:59pm

सही कहा गणेश जी और अब समय आ गया है की आवाज़ उठाई जाए |

Comment by ganesh lohani on August 16, 2011 at 12:17pm

यही थी तुम्हारी कल्पना ?

रामराज की ऐसी अल्पना ??

गरीबी अमीरी की ऐसी खाई

प्याज रोटी की  महंगाई

आपने ठीक कहा हिंदुस्तान की अधिकतम जनता का यही हाल है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service