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ग़ज़ल

12122, 12122


1)वो मिलने आता मगर बिज़ी था
मैं मिलने जाता मगर बिज़ी था

2)था इश्क़ तुझसे मुझे भी यारा
तुझे बताता मगर बिज़ी था

3)वो कह रहा था मदद को तेरी
ज़रूर आता मगर बिज़ी था

4)मैं दूसरों की तरह जहाँ में
बहुत कमाता मगर बिज़ी था

5)वो चाहती थी मना लूँ उसको
है सच मनाता मगर बिज़ी था

6)फ़लक से तेरे लिए यक़ीनन
मैं चाँद लाता मगर बिज़ी था

7) जो साज़ छेड़ा था मेरे दिल ने
वो गुनगुनाता मगर बिज़ी था

मौलिक अप्रकाशित 

(अनीस अरमान )

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Comment by Md. Anis arman on August 2, 2021 at 12:32pm

आदरणीया रचना भाटिआ जी ग़ज़ल तक आने और पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Md. Anis arman on August 2, 2021 at 12:31pm

आदरणीया Rozina DIghe ji ग़ज़ल तक आने का बहुत बहुत शुक्रिया हार्दिक आभार 

Comment by Md. Anis arman on August 2, 2021 at 12:30pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ग़ज़ल तक आने और पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया, सुझाव अच्छा है पहले ऐसा ही कुछ सोचा था मैंने भी, एक बार फिर से धन्यवाद हार्दिक आभार 

Comment by Rachna Bhatia on August 1, 2021 at 7:32am

आदरणीय अनीस अरमान जी नमस्कार। बेहतरीन ग़ज़ल हुई।रदीफ़ पर विशेष बधाई स्वीकार करें।

Comment by Rozina Dighe on August 1, 2021 at 1:31am

आदरणीय Anis armaan जी

बहुत ख़ूब!

मगर बिज़ी था...ख़ूब!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2021 at 12:46am

वाह ! बहुत खूब ! 

भाई अनीस अरमान, आपने तो रदीफ से मुग्ध ही कर दिया ! बधाई !!

इस मिसरे को देखें -

है सच मनाता मगर बिजी था = उसे मनाता मगर बिजी था 

शुभ-शुभ

Comment by Md. Anis arman on July 31, 2021 at 10:18am

जनाब लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर साहब ग़ज़ल तक आने और खुले दिल से तारीफ़ करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 31, 2021 at 7:09am

आ. भाई अनीस जी, सादर अभिवादन। एक नये विषय की सुन्दर गजल हुई है । आज की जिन्दगी के भागमभाग और सथ ही ओढ़ी गयी व्यस्तता को बखूबी उकेरा है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by Md. Anis arman on July 30, 2021 at 9:53pm

जनाब समर कबीर साहब ग़ज़ल तक आने और प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, ममनून हूँ 

Comment by Samar kabeer on July 26, 2021 at 6:29pm

जनाब अनीस अरमान जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

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