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हम क्यों जीते हैं--कविता

हम सांस लेते हैं, हम जीते हैं
और एक दिन आखिरी सांस लेते हैं
इस आखिरी सांस के पहले
हमारे पास वक़्त होता है
अपनों के लिए कुछ करने का
समाज को कुछ लौटाने का
ऐसी वजह बनाने का
जिससे लोग याद रखें
आखिरी सांस लेने के बाद भी,
मगर अमूमन हम
बस अपने लिए ही जीते हैं
और अंत में मर जाते हैं
बिना किसी के लिए कुछ किये.
हम पेड़ पौधों से नहीं सीखते
हम तमाम जानवरों से भी नहीं सीखते
हम नहीं सीखते औरों के लिए जीना
हमारी दुनिया वास्तव में बहुत छोटी होती है
बस हमें लगता है कि
हमारे ताल्लुक़ात तमाम लोगों से है.
हम चाहते तो हैं कि लोग हमें जानें
लेकिन हम कोई वजह नहीं छोड़ते
जिससे लोग हमें याद रखें
उस आखिरी सांस के बाद
जिसे हर एक को लेना है
और इस जहाँ से चले जाना है.


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on May 31, 2021 at 8:57pm

इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ बृजेश कुमार 'ब्रज' जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2021 at 5:42pm

बढ़िया कविता लिखी है विनय कुमार जी..बधाई

Comment by विनय कुमार on May 18, 2021 at 5:13pm
इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ Aazi Tamaam साहब
Comment by Aazi Tamaam on May 15, 2021 at 7:19am

जनाब विनय जी अच्छी रचना है

Comment by विनय कुमार on May 13, 2021 at 10:34am
इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहब
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 12, 2021 at 12:01pm

आ. भाई विनय जी, सादर अभिवादन । प्रासंगिक व सुन्दर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।

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