For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुहब्बत की ज़मीँ देकर यक़ीं का आसमाँ दे दो (१२० )

( 1222 1222 1222 1222 )
मुहब्बत की ज़मीँ देकर यक़ीं का आसमाँ दे दो
रहोगे सिर्फ़ मेरे तुम मुझे बस यह ज़बाँ दे दो
न रक्खो चीज़ कोई तुम तअल्लुक़ जिसका ग़म से है
तुम्हारी सिसकियाँ आहें कराहें और फुगाँ दे दो
परख लें एक दूजे को किसी कोने में रह लूंगा
मुझे कुछ दिन किराये पर सनम दिल का मकाँ दे दो
मुहब्बत में नफ़'अ-नुक़्सान की परवाह किसको है
चलो रक्खो तुम्हीं सब फ़ायदा मुझको ज़ियाँ दे दो
मेरे जज़्बात की कुछ क़द्र करना सीख लो हमदम
मेरी परवाज़-ए-उल्फ़त को खुला तुम आसमाँ दे दो
मेरे अरमान में शामिल तुम्हारी चाहतें भी हों
चढ़े परवान इश्क़ अपना वो ख़्वाबों का जहाँ दे दो
रक़ीबों को इशारे अलविदा के अब करो जानाँ
मुझे इश्क़-ए-हक़ीक़ी और उन्हें इश्क़-ए-गुमाँ दे दो
मुझे दरकार-ए-नूर-ए-मिह्र या महताब की क्या है
जहाँ पर सिर्फ़ नूर-ए-इश्क़ हो वो कहकशाँ दे दो
'तुरंत' इस आलम-ए-ख़ुदगर्ज़ से क्या माँगना कुछ भी
मुझे हक़ राज़दारी का मेरे ऐ मेहरबाँ दे दो
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

मौलिक व अप्रकाशित
शब्दार्थ --फुगाँ =रोना धोना ,जियाँ =नुक़्सान ,
रक़ीबों=प्रतिद्वंदियों ,इश्क़-ए-हक़ीक़ी =यथार्थ का
प्यार , इश्क़-ए-गुमाँ =कल्पना का प्यार ,
नूर-ए-इश्क़=प्यार का प्रकाश ,दरकार-ए-नूर-ए-मिह्र=
सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता,कहकशाँ =आकाशगंगा ,
आलम-ए-ख़ुदगर्ज़=स्वार्थी संसार

Views: 542

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 31, 2020 at 7:16pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आपकी पुरख़ुलूस हौसला आफ़जाई के लिए शुक्रगुज़ार हूँ | सादर नमन | 

Comment by Samar kabeer on August 31, 2020 at 6:02pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 30, 2020 at 8:08pm

//यहाँ पर गौर करें तो दो स्टेटमेंट हैं -मिह्र के नूर की दरकार क्या या महताब की क्या जरूरत है | कोई भी सुझाव तभी दिया जा सकता है ,जब रचना को ध्यान देकर पढ़ा जाये//

हुज़ूर मैने आपकी रचना को पूरे ध्यान से न सिर्फ पढ़ा है बल्कि मनन किया है और पाया है कि इंगित मिसरे में एक ही कथन है फिर से देखते हैं :  "मुझे दरकार-ए-नूर-ए-मिह्र 

                या महताब की क्या है"      क्योंकि दोनों अलग अलग टुकड़े अधूरे हैं। 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 30, 2020 at 6:36pm

आदरणीय जब बह्र के मुताबिक नहीं तो सही तरीका क्या हुआ ? यहाँ पर गौर करें तो दो स्टेटमेंट हैं -मिह्र के नूर की दरकार क्या या महताब की क्या जरूरत है | ख़ैर आपके सुझाव के लिए तो आभारी हूँ | कोई भी सुझाव तभी दिया जा सकता है ,जब रचना को ध्यान देकर पढ़ा जाये | सादर नमन | 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 30, 2020 at 5:45pm

//इस मिसरे में क्या गड़बड़ है खुल कर बताएं तो पता चले मुझे तो कोई चूक नज़र नहीं आती //

"मुझे दरकार-ए-नूर-ए-मिह्र (या महताब की) क्या है" (यहांँ "की" का कोई औचित्य नहीं हैै।) 

"मुझे दरकार-ए-नूर-ए-मिह्र-ओ-महताब क्या है" (सहीह तरीक़ा, ये आपकी बह्र के मुताबिक़ नहीं है।) 

"मुझे दरकार नूर-ए-मिह्र या महताब की क्या है" (काम चलाऊ तरीक़ा, आपकी बह्र के मुताबिक़ है।)  सादर। 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 30, 2020 at 4:15pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' सर ,आपकी हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया |  इस मिसरे में क्या गड़बड़ है खुल कर बताएं तो पता चले मुझे तो कोई चूक नज़र नहीं आती | 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 30, 2020 at 3:40pm

आदरणीय जनाब गिरधारी सिंह गहलोत जी 'तुरंत' आदाब, अर्से बाद ओ बी ओ में पुनरागमन पर आपका हार्दिक स्वागत है, और आपका आना जिस शानदार ग़ज़ल के साथ हुआ है वह भी ख़ुशगवार है, हर शे'र क़ाबिल-ए-तारीफ़ है, शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। मेरे ख्याल से आप इज़ाफ़त के माहिर हैं और इस ग़ज़ल में भी आपने इसकी मिसाल पेश की है मगर, 

"मुझे दरकार-ए-नूर-ए-मिह्र या महताब की क्या है" इस मिसरे में एक चूक हो गयी है। देखियेगा। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"//उसकी तारीफ़ में जो कुछ भी ज़ुबां मेरी कहेउसको दरिया-ए-मुहब्बत की रवानी लिखना// वाह! नयापन है इस…"
25 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ! अच्छी ग़ज़ल से मुशाइरा आरंभ किया आपने। बहुत बधाई! // यूँ वसीयत में तो बेटी…"
39 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हर कहानी को कई रूप रुहानी लिखना जाविया दे कहीं हर बात नूरानी लिखना मौलवी हो या वो मुल्ला कहीं…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"सहृदय शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"सहृदय शुक्रिया आदरणीय दयाराम जी ग़ज़ल पर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"सादर आदरणीय सौरभ जी आपकी तो बात ही अलग है खैर जो भी है गुरु जी आदरणीय समर कबीर ग़ज़ल के उस्ताद हैं…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी शुक्रिया आदरणीय मंच के नियमों से अवगत कराने के लिए"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथलेश जी, गलती से ऐसा हो गया था। आपकी टिप्पणी के पश्चात ज्ञात हुआ तो अब अलग से पोस्ट कर दी…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"ग़ज़ल - 2122 1122 1122 22 काम मुश्किल है जवानी की कहानी लिखनाइस बुढ़ापे में मुलाकात सुहानी लिखना-पी…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरी समर साहब से तीन दिन पहले ही बातें हुई थीं। उनका फोन आया था। वे 'दुग्ध' शब्द की कुल…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, आपने शानदार ग़ज़ल कही है। गिरह भी खूब लगाई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी, आपने बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service