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ग़ज़ल : एक तन्हा ग़ज़ल रहा हूँ मैं

एक तन्हा ग़ज़ल रहा हूँ मैं
उसकी यादों में चल रहा हूँ मैं (1)

तेरी यादों में ज़िन्दगी जी कर,
ज़िन्दगी को मसल रहा हूँ मैं (2)

कैसी हो ज़िन्दगी बताओ तुम?
तेरे ग़म में उबल रहा हूँ मैं (3) 

प्यार में इक महीन सा काग़ज़,
भीग आँसू से गल रहा हूँ मैं (4) 

तुम मुझे देख मुस्कुराते हो,
सारी दुनिया को खल रहा हूँ मैं (5) 

वो मेरी राह में खड़ी होगी ,
इसलिए तेज चल रहा हूँ मैं (6)  

दोपहर का उमस भरा मौसम,
धीरे धीरे बदल रहा हूँ मैं (7)  

दूरियों का असर बताता हूँ ,
वो सुलगते हैं,जल रहा हूँ मैं (8)  

हर जगह तुम दिखाई देते हो,
इस खुशी में उछल रहा हूँ मैं (9)  

चाँद,सूरज,हवा तेरे चेहरे,
तेरे चेहरों में पल रहा हूँ मैं (10)  

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by सूबे सिंह सुजान on May 6, 2020 at 5:19am

सुरेन्द्र नाथ सिंह जी , रचना को पढ़कर बधाई दी है । 

आपकी सक्रियता को नमन है ।

Comment by नाथ सोनांचली on May 5, 2020 at 7:46am

आद0 सूबे सिंह सुजान जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 4, 2020 at 4:56pm

समर कबीर साहब बहुत बहुत शुक्रिया जनाब ।

आपने ठीक ध्यान दिलाया है ।यह एडिट हो जाएगा 

Comment by Samar kabeer on May 4, 2020 at 3:08pm

जनाब सूबे सिंह सुजान जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'कैसी हो ज़िन्दगी बताओ तुम?
तेरे ग़म में उबल रहा हूँ मैं'

इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,ऊला यूँ कर लें तो दोष निकल जाएगा:-

'कैसी है ज़िन्दगी बता मुझको'

कृपया ध्यान दे...

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