नमस्कार अहबाब, तरही मुशायरा २३ में वक़्त पर मैं कोई ग़ज़ल नहीं कह पाया, क्योंकि तब तक मैं इस परिवार का हिस्सा ही नहीं था. अब उस मिसरे पर ख़ामा घिसाई का मन हुआ तो कुछ अश'आर कह दिए. आपकी नज़्र हैं, कोई ग़लती या ऐब दिखाई दे तो बेशक़ इत्तेला करें
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गरचे तेरे ख़याल का मेयार हम नहीं
तो क्या तेरी तलब से भी दो-चार हम नहीं
वो चारागर है, सोचके मरता है दिल का हाल
आज़ार तो यही है कि बीमार हम नहीं
ऐ जान-ए-जान ग़ौर से देख इन्तहा-ए-शौक़
ख़ून-ए-जिगर है हम पे,…
Added by Vipul Kumar on June 29, 2012 at 7:00pm — 14 Comments
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