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Chetan Prakash's Blog – December 2020 Archive (3)

ग़ज़ल

221 1221 1221 122

.

आग़ाज मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है

आँखों में इजाज़त है हलाहल भी नहीं है।

क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है ज़माने

इन्सान बनेगा कोई अटकल भी नहीं है ।

आसान नहीं होता जहाँ रोटी जुटाना,

तू मौज मनाता दुखी बेकल भी नहीं है |

क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीँ पड़ता

मुँहजोर है औलाद उसे कल भी नहीं है |

है एक मुसीबत वो निभाने हैं मरासिम,

अब वक्त बचा क़म है, वो दल-बल भी नहीं…

Continue

Added by Chetan Prakash on December 5, 2020 at 7:30am — 2 Comments

ग़ज़ल

2 2 1 1 2 2 1 1 2 2 1 1 2 2

आग़ाज़ मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है

आँखों में इज़ाज़त है तो हलचल भी नही हैं

क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है, ज़माने

ऐसी तो खुदाया यहाँ हलचल भी नहीं है

आसान नहीं होता जहाँ  रोटी का कमाना

इस ओर तो तेरी कहीं हलचल भी नहीं है

क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीं आता

औलाद ने उस ओर की हलचल भी नहीं है

है एक मुसीबत वो निभाने हैं, मरासिम

सुन वक़्त बचा क़म है वो हलचल भी…

Continue

Added by Chetan Prakash on December 3, 2020 at 7:00pm — 5 Comments

रोटी

गोल -गोल होती है रोटी

 गाँव-गाँव से शहर आता

आकर अपना खून बेचता

वो गँवार आदमी देखो तुम

रोटी खातिर महल बनाता |

गोल- गोल होती है रोटी...!

सच्चा कर्म-योगी वही है

प्याज-हरी धर खाता रोटी,

धरती माँ का पुत्र वही है

मोटी- मोटी उसकी रोटी |

गोल-गोल होती है रोटी..!

दुनिया बनी ये काज रोटी

बाल-ग्वाल कमा रहे रोटी

सारा शहर रचा हे, रोटी,

गाँव- गाँव बना है रोटी |

गोल-गोल होती है…

Continue

Added by Chetan Prakash on December 3, 2020 at 7:26am — 3 Comments

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