कभी-कभी खुद से बात करना
भी बड़ा अजीब सा होता है
कभी-कभी खुद को
सुनने का मन नहीं करता
जब सच खुद से बोला नहीं जा सकता
और
झूठ में जीना
मुश्किल लगता है.
ये मेरी अप्रकाशित रचना है.
अभिषेक शुक्ल
Added by ABHISHEK SHUKLA on August 29, 2016 at 5:10pm — 1 Comment
ये लोक तंत्र है
कहने के लिए
हम चुनते हैं
अपना प्रतिनिधि
वोट देकर
संविधान द्वारा स्थापित
प्रक्रिया
का सम्मान कर कर
लोकतंत्र की गरिमा
का
मन रख,
पर मिलता है हमें
धोखा
सरकार बने
फिर कैसी जनता
कैसा जनतंत्र?
संविधान हमारा
छत है
धुप, बारिश, पानी
सबसे बचाना इसका
काम है
पर अब
लगता है की
इस छतरी में छेद है.
जिसका पैसा
उसका कानून
और
फैसले भी उसके
पक्ष में.
क्या यही अवधारणा…
Added by ABHISHEK SHUKLA on April 21, 2014 at 12:44am — 5 Comments
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