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Dr.Prachi Singh's Blog – May 2016 Archive (1)

रुनझुन फिर पायल होने दो.... गीत//डॉ प्राची

बरसो तुम जीभर मरुथल में, अब खुद को बादल होने दो।

अपनी एक छुअन से मेरा पोर-पोर संदल होने दो।



जब खुशियों की सेज बिछी थी

तब आँखों में स्वप्न भिन्न थे,

रूठे-रूठे से हम थे या-

सौभागों के पृष्ठ खिन्न थे,

वक्र चाल हर तिरछे ग्रह की अब बिल्कुल निष्फल होने दो। अपनी एक....



अपनी-अपनी ज़िद को पकड़े

तन्हाई से खूब लड़े हैं,

लहरों की आवाजाही बिन

तट दोनों खामोश पड़े हैं,

पानी में कुछ तो हलचल हो, लहरें अब चंचल होने दो। अपनी एक....…



Continue

Added by Dr.Prachi Singh on May 7, 2016 at 5:30am — 4 Comments

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