दोहा पंचक. . . . प्रेम
अधरों पर विचरित करे, प्रथम प्रणय आनन्द ।
चिर जीवित अभिसार का, रहे मिलन मकरंद ।।
खूब हुआ अभिसार में, देह- देह का द्वन्द्व ।
जाने कितने प्रेम के, लिख डाले फिर छन्द ।।
मदन भाव झंकृत हुए, बढ़े प्रणय के वेग ।
अधरों के बैराग को, मिला अधर का नेग ।।
धीरे-धीरे रैन का , बढ़ने लगा प्रभाव ।
मौन चरम अभिसार के, मन में जले अलाव ।।
नैन समझते नैन के, अनबोले स्वीकार ।
स्पर्शों के दौर में, दम…
Added by Sushil Sarna on March 23, 2024 at 2:45pm — 4 Comments
कुंडलिया - गौरैया
गौरैया को देखने, हम आ बैठे द्वार ।
गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार ।
सुंदर लगे संसार , धरा पर दाना खाती ।
लेकर तिनके साथ, घोंसला खूब बनाती ।
कह ' सरना ' कविराय, धूप में ढूँढे छैया ।
उसको उड़ते देख, कहें री आ गौरैया ।
सुशील सरना / 21-3-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 21, 2024 at 4:00pm — 4 Comments
दोहा पंचक. . . . .
महफिल में तनहा जले, खूब हुए बदनाम ।
गैरों को देती रही, साकी भर -भर जाम ।।
गज़ब हया की सुर्खियाँ, अलसाए अन्दाज़ ।
सुर्खी सारे कह गई, बीती शब के राज़ ।।
साथी है अब वेदना, विरही मन की यार ।
विस्मृत होता ही नहीं, वो अद्भुत संसार ।।
उसे भुलाने के सभी, निष्फल हुए प्रयास ।
मदन भाव उन्नत हुए, मन में मचली प्यास ।।
कोई पागल हो गया, किसी ने खोये होश ।
आशिक को घायल करे, मदमाती आगोश…
Added by Sushil Sarna on March 18, 2024 at 4:03pm — No Comments
दोहा पंचक. . . .
कर्मों के परिणाम से, गाफिल क्यों इंसान ।
ऐसे जीता जिंदगी, जैसे हो भगवान ।।
भौतिक युग की सम्पदा, कब देती आराम ।
अर्थ पाश में जिंदगी , भटके चारों याम ।।
नश्वर तन को मानता, अजर -अमर परिधान ।
बस में समझे साँस को, यह दम्भी इंसान ।।
साथ चली किसके भला, अर्थ दम्भ की शान।
खाक चिता पर हो गई, इंसानी पहचान ।।
कहे स्वयंभू स्वयं को , माटी का इंसान ।
मुट्ठी भर अवशेष बस,मैं -मैं की पहचान ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 10, 2024 at 3:13pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . नारी
नर नारी से श्रेष्ठ है, हुई पुरानी बात ।
जीवन के हर क्षेत्र में, नारी देती मात ।।
नर नारी के बीच अब, नहीं जीत अरु हार ।
बनी शक्ति पर्याय अब, वर्तमान की नार ।।
कंधे से कंधा मिला, दे जीवन को अर्थ ।
नारी अब हर क्षेत्र में, लगने लगी समर्थ ।।
अनुपम कृति है ईश की, इस जग का आधार ।
लगे अधूरा सृष्टि का , नारी बिन शृंगार ।।
आसमान छूने चली, कल की अबला नार ।
देख…
Added by Sushil Sarna on March 9, 2024 at 5:35pm — No Comments
दोहा पंचक . . .
बातें करते प्यार की, करें न सच्चा प्यार ।
इस स्वार्थी संसार में, सब मतलब के यार ।।
सच्चे- झूठे सब यहाँ, कैसे हो पहचान ।
कई मुखौटों में छिपा,कलियुग का इंसान ।।
सच्चा मन का मीत वो, सच्ची जिसकी प्रीति ।
वो क्या जाने प्रीति जो, सिर्फ निभाये रीत ।।
छलते हैं क्यों आजकल, व्याकुल मन को मीत ।
सिर्फ देह को भोगना, समझें अपनी जीत ।।
कैसे यह अनुबंध हैं, कैसे यह संबंध ।
देह क्षुधा के दौर में,…
Added by Sushil Sarna on March 5, 2024 at 3:45pm — 2 Comments
दोहा सप्तक - जीवन तो अनमोल है
जीवन तो अनमोल है, इसके लाखों रंग ।
पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग ।1।
जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार ।
कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार ।2।
जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।
अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत अर्थ ।3।
जीवन तो अनमोल है, इसके अनगिन रूप ।
इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप ।4।
जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।
बहुत कठिन है जानना , इसका अर्थ…
Added by Sushil Sarna on March 3, 2024 at 2:36pm — No Comments
दोहा त्रयी. . . . .
जीवन में ऐश्वर्य के, साधन हुए अनेक ।
अर्थ दौड़ में खो गया, मानव धर्म विवेक ।।
चले न कोई साथ जब, साथ निभाता नाथ ।
संचित कितना भी करो, खाली रहते हाथ ।।
गौण हुईं अनुभूतियाँ, क्षीण हुए सम्बंध ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।
सुशील सरना / 23-2-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 22, 2024 at 1:31pm — 2 Comments
दोहा त्रयी. . . .
मन के मधुबन से हुई , लुप्त नेह की गंध ।
काई देती स्वार्थ की, रिश्तों में दुर्गन्ध ।।
बदल गया परिवार में, रिश्तों का अब रूप ।
तीखी लगती स्वार्थ की, अब आँगन में धूप ।।
अर्थ रार में खो गए, रिश्ते सारे खास ।
धन वैभव ने भर दिया, जीवन मैं संत्रास ।।
सुशील सरना / 11-2-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 11, 2024 at 2:06pm — 2 Comments
दोहा सप्तक. . . .
बन कर ख़याल रह गया, जीवन का हर मोड़ ।
अपने सब कब चल दिये, तनहा हमको छोड़ ।1।
बदला जीवन आज का, बदली जीवन सोच ।
एक पेट भरपेट है, क्षुधित कहीं पर चोंच ।2।
पर धन की है लालसा, कुत्सित घृणित विचार ।
जीवन को मत दीजिए, दागदार उपहार ।3।
रह -रह कर मन मीत का,आता मधुर ख़याल ।
दिल की यह बेचैनियाँ, बदलें जीवन चाल ।4।
वैसा होता आचरण, जैसी होती सोच ।
रोटी तब अच्छी बने,जब आटे में…
Added by Sushil Sarna on February 6, 2024 at 2:19pm — No Comments
दोहा पंचक. . . नैन
नैन द्वन्द्व में नैन ही , गए नैन से हार ।
नैनों को अच्छी लगे, नैनों से तकरार ।।
नैनों से तकरार का, लगे अजब आनन्द ।
हृदय पृष्ठ पर प्रीत के, अंकित होते छन्द ।।
नैनों के संवाद की, अद्भुत होती नाद ।
नैन सुनें बस नैन के, अनबोले संवाद ।।
नैनों से होती सदा, मौन सुरों में बात ।
नैनों की मनुहार में, बीते सारी रात ।।
नैनों के संसार की, किसने पायी थाह ।
नैन तीर पर हो सदा, लक्षित…
Added by Sushil Sarna on February 3, 2024 at 1:53pm — 2 Comments
दोहा त्रयी. . . सन्तान
सन्तानों के बन गए ,अपने- अपने नीड़ ।
वृद्ध हुए माँ बाप अब, तन्हा बाँटें पीड़ ।।
अर्थ लोभ हावी हुए, भौतिक सुख विकराल ।
क्षीण दृष्टि माँ बाप की, ढूँढे अपना लाल ।।
सन्तानों की आहटें , देखें अब माँ बाप ।
वृद्ध काल में बन गई, ममता जैसे श्राप ।।
सुशील सरना / 19-1-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 19, 2024 at 1:00pm — 4 Comments
दोहा त्रयी. . . शंका
शंका व्यर्थ न कीजिए, यह दुख का आधार ।
मन का छीने चैन यह , शूलों का संसार ।।
शंका का संसार में, कोई नहीं निदान ।
इसके चलते हों सदा, रिश्ते लहू लुहान ।।
शंका बैरी चैन की, नफरत का यह द्वार ।
प्यार भरे संसार में, यह भरती अंगार ।।
सुशील सरना / 17-1-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 17, 2024 at 2:59pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . .
कितनी चंचल हो गई, बूंद ओस की आज ।
संग किरण के घास पर, नाचे बिन आवाज ।।
मौसम आया पोष का, लगे भयंकर शीत ।
मुख से निकले प्रीत के, कंपित सुर में गीत ।।
लो धरती पर हो गया , शीत धुंध का राज ।
भानु धुंधला सा हुआ, छुपा ताप का ताज।।
हरित पर्ण पर ओस ज्यों , लगती जीवन आस।
बूँद- बूँद में कल्पना, कवि की भरे उजास ।।
शीत भगाने के लिए, जलने लगे अलाव ।
धीमी-धीमी आँच में, चली प्रेम की नाव…
Added by Sushil Sarna on January 10, 2024 at 3:29pm — 3 Comments
दोहा पंचक. . . क्रोध
जितना संभव हो सके, वश में रखना क्रोध ।
घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित प्रतिरोध ।।
देना अपने क्रोध को, पल भर का विश्राम ।
टल जाएंगे शूल से, क्रोध जनित परिणाम ।।
शमन क्रोध का कीजिए, मिटता बैर समूल ।
प्रेम भाव की जिंदगी, माने यही उसूल ।।
रिश्ते होते खाक जब, जले क्रोध की आग ।
प्रेम विला में गूँजते, फिर नफरत के राग ।।
क्रोध बैर का मूल है, क्रोध घृणा की आग ।
क्रोध अनल के कब मिटे,…
Added by Sushil Sarna on December 24, 2023 at 12:49pm — 4 Comments
दोहा - सप्तक...
गाफिल क्यों अंजाम से, तू आखिर नादान ।
तेरे इस अस्तित्व की, मिट्टी है पहचान ।।
धू -धू कर यह जिस्म जला, जले साथ अरमान ।
इच्छाओं की रुक गई, मैं - मैं भरी उड़ान ।।
ढह जाएंगे सब यहाँ, पत्थर के प्रासाद ।
मलबे होगे दंभ के, रोयेंगे उन्माद ।।
साँसों का चप्पू चले, धड़कन करती नाद ।
चित्रित अधरों पर हुए, अधरों के अनुवाद ।।
और -और की लालसा, मिटी न मिटे शरीर ।
भौतिक युग का आदमी , रहता सदा फकीर ।।
साथी वो किस काम के ,दें…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 21, 2023 at 12:24pm — No Comments
दोहा पंचक. . . .
साथ श्वांस के रुक गया, जीवन का संघर्ष ।
आँचल अंक विषाद के, मौन हुआ हर हर्ष ।।
जैसे-जैसे दिन ढले, लम्बी होती छाँव ।
काल समेटे जिन्दगी, थमते चलते पाँव ।।
इच्छाओं की आँधियाँ, आशाओं के ढेर ।
क्या समझेगी जिन्दगी, साँसों का यह फेर ।।
पगडंडी पक्की हुई, क्षीण हुए सम्बंध ।
अर्थ क्षुधा में खो गई, एक चूल्हे की गंध ।।
पत्थर सारे मील के, सड़क किनारे मौन ।
अपने अन्तिम अंक को, पढ़ पाया है कौन…
Added by Sushil Sarna on December 17, 2023 at 11:30am — 2 Comments
दोहा पंचक . . . .
लुप्त हुई संवेदना, कड़वी हुई मिठास ।
अर्थ रार में खो गए , रिश्ते सारे खास ।।
*
पहले जैसे अब कहाँ, मिलते हैं इन्सान ।
शेष रहा इंसान में, बड़बोला अभिमान ।।
*
प्रीत सरोवर में खिले, क्यों नफरत के फूल ।
तन मन को छिद्रित करें, स्वार्थ भाव के शूल ।।
*
किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।
भूल -भाल कर दुश्मनी , सबकी माँगें खैर ।।
*
शर्तों पर यह जिंदगी , काटे अपनी राह ।
सुध-बुध खो कर सो रही, शूल नोक पर चाह…
Added by Sushil Sarna on November 5, 2023 at 7:46pm — 4 Comments
जीवन ....दोहे
झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का संघर्ष ।
जरा अवस्था देखती, मुड़ कर बीते वर्ष ।।
क्या पाया क्या खो दिया, कब समझा इंसान ।
जले चिता के साथ ही, जीवन के अरमान ।।
कब टलता है जीव का, जीवन से अवसान ।
जीव देखता रह गया, जब फिसला अभिमान ।।
देर हुई अब उम्र की, आयी अन्तिम शाम ।
साथ न आया काम कुछ ,बीती उम्र तमाम ।।
जीवन लगता चित्र सा, दूर खड़े सब साथ ।
संचित सब छूटा यहाँ, खाली दोनों हाथ…
Added by Sushil Sarna on October 17, 2023 at 9:30pm — 6 Comments
लेबल्ड मच्छर ......(लघु कथा )
"रामदयाल जी ! हमें तो पता ही नही था कि हमारे मोहल्ले से मच्छर गायब हो गए हैं सिर्फ पार्षद के घर के अलावा ।" दीनानाथ जी ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा ।
"वो कैसे ।" रामदयाल जी बोले ।
"वो क्या है रामदयाल जी । आज सवेरे में छत पर पौधों को पानी दे रहा था कि अचानक मुझे नीचे कोई मशीन चलने की आवाज सुनाई दी । नीचे देखा तो देख कर दंग रह गया ।"
"क्यों? क्या देखा दीनानाथ जी । पहेलियाँ मत बुझाओ ।साफ साफ बताओ यार ।" रामदयाल जी बोले…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 15, 2023 at 8:05pm — No Comments
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