जलते दीपक कर रहे, नित्य नये पड्यंत्र।
फूँका उन के कान में, तम ने कैसा मंत्र।१।
*
जीवनभर बैठे रहे, जो नदिया के तीर।
भाँणों ने उनको लिखा, मझधारों के वीर।२।
*
करती हो पतवार जब, दुश्मन सा व्यवहार।
कौन करे उम्मीद फिर, नाव लगेगी पार।३।
*
दुख के अपने रंग हैं, दुख की अपनी चाल।
जिसके चंगुल में हुए, जग में सभी निढाल।४।
*
लूले-लँगड़े सुख सकल, साध रहे नित मौन।
आगे बढ़कर फिर भला, दुख को कुचले कौन।५।
*
दुख के जनपद हैं बहुत, सुख…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2023 at 10:25pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
*
अब न काली रातों में ही चूमती फिरती है लब
भोर में भी यह उदासी चूमती फिरती है लब।१।
*
वो जमाना और था जब प्यार था पर्दानशीं
आज तो हर बेहयायी चूमती फिरती है लब।२।
*
जेब खाली की न घर में पूछ होती आजकल
धन मिले तो स्वर्ग दासी चूमती फिरती है लब।३।
*
मोल रोटी का उसी को हम से बढ़कर ज्ञात है
नित्य जिसके सिर्फ बासी चूमती फिरती है लब।४।
*
हर थकन से मुक्ति पाती देह जर्जर आज भी
जब गले लग झट से बच्ची…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 29, 2023 at 11:00am — 2 Comments
माँ का आँचल बाल को, सदा सुरक्षा ढाल
टलता जिसकी छाँव में, आया संकटकाल।१।
*
हीरे, मोती, स्वर्ण का, रख कितना भी तोल
माँ की ममता का नहीं, पास किसी के मोल।२।
*
माँ के आँचल के तले, मिलती ऐसी छाँव
हर्षित होकर नाचता, हर दुखियारा गाँव।३।
*
चाहे मन से हो स्वयं, माँ यूँ बहुत उदास
बच्चों को देती मगर, सदा खुशी की आस।४।
*
अपने सब दुख भूलकर, देती सबको हर्ष
माता जीवन नींव है, माता ही उत्कर्ष।५।
*
रग-रग में माँ के भरे, ममता, करुणा,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2023 at 10:10pm — 2 Comments
थकन भले ही देह में, किन्तु न माने हार
स्वर्ग श्रम से नित करे, वह नीरस संसार।१।
*
लहू देह से बन बहे, जिसके पलपल स्वेद
जग में बाँटे हर्ष जो, सब से लेकर खेद।२।
*
कर्मलीन जो हर समय, दिवस रात्रि में जाग
जगने देते पर नहीं, शोषक उस का भाग।३।
*
श्रम से उस के हो गये, चन्द लोग धनवान
जिसकी हालत को कहे, जग दोषी भगवान।४।
*
हिस्से में ले जी रहा, भले भूख मजदूर
गाली, लाठी, गोलियाँ, मिलें उसे भरपूर।५।
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गुजर किया मजदूर ने,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2023 at 11:50am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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बातों में सिर्फ देश का उद्धार हो रहा
बाँकी स्वयं के वास्ते व्यापार हो रहा।१।
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चमकेगी उनकी और सियासत पता उन्हें
बेवश युवा यहाँ का जो मिस्मार हो रहा।२।
*
कीमत बढ़े ही जा रही हर एक चीज की
निर्धन का जीना रोज ही दुश्वार हो रहा।३।
*
कुर्सी पे जब से बैठे हैं ईमानदार ढब
नेता वतन का और भी मक्कार हो रहा।४।
*
आँधी चली है देश में कैसी विकास की
लाचार अब तो और भी लाचार हो रहा।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2023 at 9:55pm — 2 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 27, 2023 at 9:03pm — 4 Comments
रोशनी उस पार बेढब नित दिखाती खिड़कियाँ
काश नन्ही भोली चिड़िया खोल पाती खिड़कियाँ/१
*
है नहीं कोई उबासी सोच पर हावी सनम
ताजगी का एक झोंका नित्य लाती खिड़कियाँ/२
*
दूर पथ पर चाँद बढ़ता हसरतों से देखना
याद का झोंका लिए यूँ याद आती खिड़कियाँ/३
*
इस हवा को बात कोई कर रही बेचैन क्या
द्वार के ही साथ जो ये खटखटाती खिड़कियाँ/४
*
ढूँढ लेना छाँव पन्छी पेड़ की इक डाल पर
दोपहर की धूप से जब कुम्हलाती खिड़कियाँ/५
*
कर दिया जर्जर समय ने ओढ़ ली हर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 31, 2023 at 10:24pm — No Comments
आ जाती हैं तितलियाँ, होते ही नित भोर
सब को इनकी सादगी, खींचे अपनी ओर।१।
*
मधुवन में जब तितलियाँ, बहुत मचाती धूम
पीछे - पीछे भागता, हर्षित बचपन झूम।२।
*
फूलों से अठखेलियाँ, कलियों से कर बात
तन–मन में जादू जगा, तितली सोये रात।३।
*
मधुबन में जब बैठते, बच्चे , वृद्ध, जवान
सबकी देखो तितलियाँ, हरती लुभा थकान।४।
*
छोटे -छोटे पंख से, रचकर मृदु संगीत
कलियों से तितली कहे, फूल बने हैं मीत।५।
*
नापे नभ को तितलियाँ,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 31, 2023 at 10:02pm — 2 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
*
अँधेरों से जब जब डरी रोशनी है
बड़ी मुश्किलों में पड़ी जिन्दगी है।१।
*
कहीं आदमी खुद लगे देवता सा
कहीं देवता भी हुआ आदमी है।२।
*
सहेजी न हम से गयी यार पुरवा
कहो मत कि अब हर हवा पश्चिमी है।३।
*
हमें यूँ न रंगीन सपने दिखाओ
हमारे हृदय में बसी सादगी है।४।
*
समझ कौन पाया रही एक औषध
कहन आपकी जो लगी नीम सी है।५।
*
वही लोक में नित हुए देवता हैं
जिन्हें नार केवल रही उर्वसी है।६।
*
मौलिक /…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 30, 2023 at 4:57am — 2 Comments
नित्य तुम्हारे चन्द्र रूप को, मन चाहा शृंगार लिखूँ ।
मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।
छुईमुई हो पीर सयानी,
सुख की नूतन रहे कहानी।।
अँखियों में चंचलता खेले,
सिर पर ओढ़े चूनर धानी।।
मुस्कानों की हर गठरी पर, यौवन का उपहार लिखूँ।
मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।
*
छमछम पायल ओट बजाना
फिर साँसों की सुधि भरमाना।।
भौंरों जैसी अठखेली पर,
छुईमुई सा झट शरमाना।।
बालापन सी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2023 at 9:05am — 2 Comments
हर पीड़ा जब पतझड़ ढोता, तब हँसता सन्सार वसंती।
पतझड़ से मत घबराना मन, हर पतझड़ आधार वसन्ती।।
*
सुमन नहीं इसके हिस्से में,
केवल पत्ते, वही बिछाता।
एक यही तो ऋतुराज की,
करने को अगवानी आता।
है इसका हर त्याग अबोला, खिलता जिससे प्यार वसन्ती।
पतझड़ से मत घबराना मन, हर पतझड़ आधार वसन्ती।।
*
मत कोसो इसको नीरस कह,
इस ने हर नीरसता लूटी।
झाड़े इसने तन से कणकण,
तब जाकर नव कोंपल फूटी।।
चलो सराहो इसकी कोशिश, जिस ने जोड़ा तार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2023 at 8:11pm — 3 Comments
लुकछिप आना झील किनारे, लेकर गोरी रंग।
बरसों बाद मनायें होली, फिर से हम तुम संग।।
*
सुनते सब से गाँव तुम्हारे, यौवन भरी बहार।
फागुन में लचकी है चहुँदिश, फूलों वाली डार।।
फूल पलासी भरना थोड़े, आँचल अबकी बार।
हम सूखे पतझड़ के वासी, मानेंगे उपकार।।
**
पा लेगा उन फूलों से ही, जीवन नयी उमंग।
बरसों बाद मनायें होली, फिर से हम तुम संग।।
**
प्यासी बंजर धरती जैसे, हैं मन के हालात।
रूठ गयी है हर एक बदली, हवा न करती बात।।
कर बैठा …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2023 at 7:13am — 8 Comments
अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव
भरी दुपहरी मिल जाती है, जहाँ पेड़ की छाँव।।
*
नगर हमेशा दुख देकर ही, माने अपनी जीत
आँगन चाहे एक नहीं पर, खड़ी बहुत हैं भीत
अपनों की तो बात अलग है, रही गाँव की रीत
किसी पराये का भी दुख में, सहला देता पाँव
अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव।।
*
उसकी माँगें नहीं असीमित, रोटी कपड़ा गेह
जिसे नगर सा नहीं ठाठ से, होता पलभर नेह
मन में सेवाभाव…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2023 at 6:17pm — 2 Comments
दिखता है हर ओर यहाँ तो केवल दुख का बौर।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
घाव कुरेदे पल पल दुनिया कर बैठी नासूर।
इस कारण ही घर कर बैठी पीर यहाँ भरपूर।।
औषध कोई काम न करती मत बोलो अब और।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
शीतल छाँव नहीं है वन में दावानल की आग।
तानसेन की सुता न कोई गाती बादल राग।।
बन्द झरोखों को क्या खोलें उमस भरा जब दौर।।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2023 at 7:31am — 2 Comments
आँखों में घड़ियाली आँसू अधरों पर चिंगारी हो
उन लोगों से बचके रहना जिनमें ढब हुशियारी हो।१।
*
सिर्फ जरूरत भर को लोगो पेड़ काटना अच्छा है
हर जंगल को नित्य मिटाने क्यों हाथों में आरी हो।२।
*
सभी पीढ़ियों कई युगों की यही धरोहर इकलौती
सिर्फ तुम्हारी एक जरूरत क्यों धरती पर भारी हो।३।
*
अल्प जरूरत अति बताकर नष्ट करो मत धरती
आज कहीं तो सुन्दर अच्छे आगत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2023 at 7:01am — 2 Comments
शोर है चहुँ ओर ,आया प्यार का मौसम, मगर
प्यार करने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए।।
*
भोग का आनन्द क्षण भर तृप्ति का आभास दे।
वह न हो पाया तो मन को हार का अहसास दे।।
कौन शिव सा अब शती की देह थामें डोलता।
ओट पाते वासना के द्वार पलपल खोलता।।
भोगने को तन तनिक उत्तेजना का पल बहुत।
प्यार करने के लिए तो पूर्ण जीवन चाहिए।।
*
देखता हर पथ सुगढ़ जाता यहाँ है प्यास तक।
आ सका है कौन अब संभोग से संन्यास तक।।
आज उपमा लिख रही उपभोगवादी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2023 at 6:35pm — 3 Comments
यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।
नये वर्ष की अँखियाँ भीगी, बीती जून जुलाई में।।
*
हिचकी आयी भोर भये से,ना रुकने का नाम लिया।
तभी पुरानी राहों ने फिर, सोचा किसने याद किया।।
पलपल, पगपग जाने कितने, रंगो को था नित्य जिया
कई सूरतें उभरीं मन में, गठरी को जब खोल दिया।।
*
चुपके-चुपके नभ रोया नित, शरद भरी जुन्हाई में।
यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।।
*
कितना चाहो भले भूलना, हिर फिर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2023 at 5:42am — No Comments
पग की गति हो चाहे मन्थर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
सूनापन हो या निर्जन हो।
तमस भले ही बहुत सघन हो।।
विचलित थोड़ा भी ना मन हो।
मत पाँवों में कुछ अनबन हो।।
*
शूल चुभें या कंकड़ पत्थर।।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
जो भी इच्छित क्यों सपना हो।
चाहे जितना भी खपना हो।।
हर नूतन पथ बस अपना हो।
धैर्य न डोले जब तपना हो।।
*
मत करना जीवन में अन्तर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
अंतिम परिणति जैसी भी हो।
जीवन से …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 10, 2023 at 12:24pm — No Comments
रूठे हो बहनों से या फिर, मद में अपने चूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
*
जल भरकर थाली में माता, हमको तुमसे भले मिलाती।
किन्तु काल्पनिक भेंट हमें ये, थोड़ा भी तो नहीं सुहाती।।
हम बच्चों की इच्छा खेलें, यूँ नित चढ़कर गोद तुम्हारी।
लेकिन तुमको भला बताओ, कब आती है याद हमारी।।
*
कौन काम से निशिदिन इतने, हो जाते मजबूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
*
हमको भी तुम जैसा भाता, ये लुका छिपी का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2023 at 11:07am — 2 Comments
जिस वसंत की खोज में, बीते अनगिन साल
आज स्वयं ही आ मिला, आँगन में वाचाल।१।
*
दुश्मन तजकर दुश्मनी, जब बन जाये मीत
लगते चहुँ दिश गूँजने, तब बसन्त के गीत।२।
*
आँगन में जिस के बसा, बालक रूप वसन्त
जीवन से उसके हुआ, हर पतझड़ का अन्त।३।
*
कहने को आतुर हुए, मौसम अपना हाल
वासन्ती संगत मिली, हुए मूक वाचाल।४।
*
करने कलियों को सुमन, आता है मधुमास
जिसके दम पर ही मिटे, हर भौंरे की प्यास।५।
*
आस बँधा कर पेड़ को, हवा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2023 at 1:00pm — 3 Comments
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